‘वैष्णव की फिसलन’, परसाई की कृति जो आज भी समाज को आईना दिखाती है
नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। आज के दौर में लोग अपने अंदर की कमी को दूर करने से ज्यादा दूसरों में कमी ढूंढने की तलाश में रहते हैं। लोगों को सोच ऐसी हो गई है कि उन्हें लगता है कि वह जो कहते हैं, बोलते हैं वह एकदम सही है और दूसरा व्यक्ति जो कह रहा है वह गलत है उसमें सुधार की जरूरत है। हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य ‘वैष्णव की फिसलन’ उन लोगों पर सटीक बैठती है तो अपनी कमियों को छिपाने के लिए नैतिकता का मुखौटा पहन लेते हैं।