सुल्तान महमूद गजनवी ने अल-बेरूनी को बनाया था कैदी, जब भारत आए तो लिख डाली 'किताब-उल-हिन्द'

IANS | September 14, 2024 3:39 PM

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जिसकी धरती पर सैकड़ों सालों के दौरान न जाने कितने लोग आए और गए। कोई यहां की खूबसूरती और संस्कृति का कायल हुआ तो किसी ने भारत की विरासत को मिटाने की कोशिश की। लेकिन, इसके बावजूद भारत आज भी अपनी पुरानी परंपरा और रीति रिवाज को बरकरार रखे हुए हैं।

"तीसरे सप्तक" ने दिलाई थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना को शोहरत, अपनी कविताओं से सिखाया जीवन जीने का सलीका

IANS | September 14, 2024 3:27 PM

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। 'अक्सर एक गंध, मेरे पास से गुजर जाती है, अक्सर एक नदी मेरे सामने भर जाती है, अक्सर एक नाव आकर तट से टकराती है, अक्सर एक लीक दूर पार से बुलाती है', ये कविता लिखी थी सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने, जिनकी लेखनी के बिना हिंदी साहित्य की कल्पना करना भी बेईमानी होगी।

बलदेव मिश्र : हिंदी के पहले डी. लिट., रविंद्र नाथ टैगोर से लेकर राजेंद्र प्रसाद तक करते थे पसंद

IANS | September 12, 2024 10:09 AM

नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदी एक भाषा से बढ़कर भारत की आत्मा है। इसे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने सच कर दिखाया। उनकी उपलब्धियां इतनी हैं कि उनके बारे में कुछ शब्दों में लिखना असंभव है। 12 सितंबर 1898 को राजनांदगांव में पैदा हुए बलदेव मिश्र की आज 128वीं जयंती है। इस लिहाज से भी उनके बारे में जानना जरूरी है।

चंद्रधर शर्मा गुलेरी : रोमियो-जूलियट के फैन भी 'उसने कहा था' पर फिदा

IANS | September 12, 2024 8:48 AM

नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। प्रसिद्ध लेखक चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने अपने शब्दों की कारीगरी से लोगों के दिलों पर राज किया। साथ ही हिंदी सहित्य में अपनी एक अलग छाप छोड़ी।

कौन है नीलमणि फूकन जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मश्री और साहित्य अकादमी से नवाजा गया?

IANS | September 10, 2024 12:31 PM

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। प्रसिद्ध असमिया कवि नीलमणि फूकन (कनिष्ठ) किसी पहचान के मोहताज नहीं। वे 'जनकवि' के रूप में भी मशहूर हैं। असम के गोलघाट जिले में 10 सितंबर 1933 को जन्मे नीलमणि फूकन मूलत: असमिया भाषा के भारतीय कवि और कथाकार थे। राजनीति से लेकर कॉस्मिक तक, समकालीन से लेकर आदिम तक, उन्होंने हर विषय पर अपनी कलम से जादू बिखेरा।

जयंती विशेष: असित हालदार रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'नाती' जिनकी कूची ने रची कहानियां

IANS | September 10, 2024 11:36 AM

नई दिल्ली, 10 सितंबर, आईएएनएस। "तुम चित्रकार ही नहीं कवि भी हो यही कारण है कि तुम्हारी तूलिका से रस धारा बहती है, तुम्हारी चेतना ने मिट्टी में भी प्राण फूंक दिए हैं।'' गुरुवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के यह शब्द उस रचनाकार के लिए हैं जिसने अपनी कूची के जरिए कहानियां रची। बीसवीं सदी का ऐसा कलाकार जिसे अंग्रेजों ने भी सम्मानित किया और जो गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के रिश्ते में नाती लगते थे। नाम था असित के हालदार। जिनकी शैली जितनी सहज थी उतनी ही मानवीय संवेदनाओं को कुरेदने वाली भी।

जब कलम से निकले शब्द किन्नरों के दर्द से 'स्याह' हो पन्नों पर उभरे, साहित्य के सूरमा भी कराह उठे

IANS | September 10, 2024 8:28 AM

नई दिल्ली, 10 सितंबर(आईएएनएस)। समाज को साहित्य और साहित्य को समाज कैसे एक-दूसरे से जोड़ता है और कैसे एक-दूसरे के बीच यह सामंजस्य बिठाता है। यह साहित्यिक रचनाओं से साफ पता किया जा सकता है। समाज में समानता-असमानता, उतार-चढ़ाव, हानि-साभ, जीवन-मरण, अपना-पराया, स्त्री-पुरुष, अच्छा-बुरा सबके चित्रण का सबसे सशक्त जरिया अगर कुछ है तो वह साहित्य है। लेकिन साहित्य के शब्द इन दो विपरीतार्थक शब्दों के कोष से निकलकर किसी तीसरे शब्द के लिए कलम के जरिए पन्नों पर उतरते हैं तो उसका एक अलग ही मिशन होता है। ऐसा ही एक साहित्य रचा गया चित्रा मुद्गल की कलम से, कालजयी इस साहित्यिक रचना का नाम रखा गया 'पोस्ट बॉक्स नंबर-203 नाला सोपारा'।

यत्र तत्र सर्वत्र : शरद, समाज और सरकार, सिस्टम पर व्यंग्य बाण चलाने वाला साहित्यकार

IANS | September 5, 2024 8:18 AM

नई दिल्ली, 5 सितंबर (आईएएनएस)। 'तुम्हारे आने के चौथे दिन, बार-बार यह प्रश्न मेरे मन में उमड़ रहा है, तुम कब जाओगे अतिथि।' भले ही यह व्यंग्य लगे। लेकिन, यह हमारे समाज, हमारे परिवार और हमारे समय की सच्चाई है। ऐसा लिखने वाला शख्स समाज की हर उस नब्ज को टटोलने में माहिर है, जिसके जरिए हम रिश्तों को परिभाषित करने का 'दंभ' भरते और 'इतराते' दिख जाते हैं।

“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं”, सत्ता के गलियारों में गूंजता था दुष्यंत कुमार का नाम

IANS | September 1, 2024 12:40 PM

नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”, ये रचना पढ़ते ही सबसे पहला नाम आता है दुष्यंत कुमार का। जिनकी इस कविता ने क्रांति का ऐसा जोश भरा कि हर ओर सिर्फ उन्हीं की चर्चा होती थी।

'महाश्वेता' और 'एम सी मेहता' एक युग प्रवर्तक तो दूसरा पर्यावरण संरक्षक कैसे इन दो महान विभूतियों को देश करेगा याद

IANS | September 1, 2024 9:21 AM

नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। साल था 1997 का और भारत अपनी आजादी के 50 साल पूरे कर रहा था। इस सब के बीच भारत के दो युग प्रवर्तकों को इस साल दुनिया में खूब सुना गया। ये थे महाश्वेता देवी और एम सी मेहता। महाश्वेता देवी साहित्यकार, उपन्यासकार, निबन्धकार के साथ ही समाज में अपनी रचनाओं के जरिए एक अलग विश्वास पैदा कर चुकी थीं तो दूसरी तरफ दुनिया में पर्यावरण बचाने को लेकर उठते शोर के बीच एक और मसीहा था जो इसके संरक्षक के तौर पर उभरकर सामने आया था नाम था एम सी मेहता। दोनों को 1 सितंबर के दिन ही रेमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया।