विश्व उर्दू दिवस : हिंदी के शब्दों का श्रृंगार बनी उर्दू कैसे खुद सजी और भाषाई समृद्धि की भी बनी पोषक, जानें लेखकों की राय
नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। भाषा केवल संवाद का नहीं बल्कि आपकी संवेदना और सांस्कृतिक समृद्धि का भी परिचायक है। भाषा के तौर पर आपको हमेशा यह एहसास उसमें रचे-बसे शब्दों के जरिए होता रहता है कि वह आपकी सोच और समझ को कितना प्रभावित करती है और आपके दिल को कितना छूती है। अंग्रेजी में शब्दों को एक बार गौर से देखें तो आपको पता चलेगा कि भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग हो रहा है वह शब्द आपके मन में एक सपाट स्पर्श छोड़ते हैं। ऐसा हिंदी या उर्दू जैसी भाषा के शब्दों के साथ नहीं है। इसमें हर शब्द की एक अलग संवेदना और संरचना है जो गहराई तक जाकर आपके मनोभाव पर असर करती है।