स्मृति शेष: 'सपने देखने वाला ही उसे साकार भी करता है', कलाम साहब की सोच, जो देश को दिखा रही राह
नई दिल्ली, 26 जुलाई (आईएएनएस)। तारीख थी 27 जुलाई, साल था 2015... और शाम ढल चुकी थी। भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिलॉन्ग का एक सभागार छात्रों से भरा पड़ा था। मंच से एक जाने-माने शख्स सबको संबोधित कर रहे थे, लेकिन तभी अचानक खामोश हो गए। अचानक लड़खड़ा कर गिरे तो उठ नहीं पाए। बाद में खबर आई तो निधन की। ये कोई और नहीं बल्कि मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे, जिन्होंने जीवन भर देश को शक्तिसंपन्न और आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा।