स्मृति शेष : 82 साल के महानायक, एक तपस्वी ने गोहत्या और पाखंड के विरुद्ध रचा इतिहास
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (आईएएनएस)। 1998 में कोलकाता के मंच पर एक 89 वर्षीय, दुर्बल लेकिन तेज से भरे तपस्वी बैठे थे। उनके सम्मान में तत्कालीन आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने जो शब्द कहे, वे सदियों तक गूंजने वाले थे। शास्त्री जी ने उन्हें 'जीवित हुतात्मा' कहकर संबोधित किया। हुतात्मा यानी वह जिसने राष्ट्र या धर्म के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया हो। लेकिन, महात्मा रामचंद्र वीर तो जीवित थे। उन्हें यह उपाधि क्यों दी गई?