चिदंबरम, 1 अगस्त (आईएएनएस)। देवाधिदेव महादेव को अति प्रिय सावन का महीना चल रहा है। देश-दुनिया में महादेव के ऐसे कई मंदिर हैं, जो खूबसूरती, भक्ति के साथ ही आश्चर्य को भी समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक मंदिर तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित है, थिल्लई नटराज मंदिर, जिसे चिदंबरम नटराज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह न केवल भगवान शिव के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि यह दुनिया के चुंबकीय भूमध्य रेखा के केन्द्र बिंदु पर स्थित है।
तमिलनाडु पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है, जो कला, अध्यात्म और विज्ञान का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। सावन के पवित्र महीने में यह मंदिर भक्तों और पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है।
नटराज मंदिर भगवान शिव को उनके नृत्य स्वरूप ‘नटराज’ के रूप में समर्पित है और यहां पर महादेव की पूजा आकाश के रूप में होती है। चिदंबरम का अर्थ है 'चेतना का आकाश', क्योंकि 'चित' का अर्थ चेतना और 'अंबरम' का अर्थ आकाश है। यह दसवीं शताब्दी में चोल वंश की राजधानी रहा।
चोल राजवंश नटराज को अपना कुलदेवता मानता था और उसी दौर में इस मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर की वास्तुकला कला और अध्यात्म के बीच की कड़ी को दर्शाती है, जहां दीवारों पर नाट्य शास्त्र के 108 करणों (नृत्य मुद्राओं) की नक्काशी देखी जा सकती है, जो भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की नींव है। मंदिर परिसर में पांच प्रमुख सभाएं, कनक सभा, चित सभा, नृत्य सभा, देव सभा, और राज सभा स्थित हैं, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाती हैं।
तमिलनाडु पर्यटन विभाग के अनुसार, नटराज मंदिर पंचभूत स्थलों में से एक है, जहां भगवान शिव आकाश (आकाश लिंगम) के रूप में पूजे जाते हैं। मंदिर की सबसे अनूठी विशेषता है ‘चिदंबरम रहस्यम’, एक पवित्र स्थान जहां भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन केवल विशेष पूजा के दौरान संभव हैं। मंदिर की छत पर 21,600 स्वर्ण पत्र लगे हैं, जबकि 72,000 स्वर्ण कीलें मानव शरीर की नाड़ियों के प्रतीक के तौर पर हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह मंदिर अद्भुत है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने शोध के बाद सिद्ध किया कि नटराज प्रतिमा के पैर का अंगूठा विश्व की चुंबकीय भूमध्य रेखा का केंद्र बिंदु है। प्राचीन तमिल विद्वान थिरुमूलर ने 5,000 वर्ष पूर्व अपने ग्रंथ ‘थिरुमंदिरम’ में इस तथ्य का उल्लेख किया था, जो आज भी वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय है।
मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है। कथानुसार, इस स्थान पर भगवान विष्णु (गोविंद राजास्वामी) विराजमान थे। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती के बीच नृत्य प्रतिस्पर्धा हुई, जिसके निर्णायक नारायण बने। दोनों के बीच लंबे समय तक नृत्य हुआ, लेकिन शिव ने ‘ऊर्ध्व तांडव’ मुद्रा अपनाई, जो महिलाओं के लिए वर्जित थी। परिणामस्वरूप, माता पार्वती ने हार मान ली और महादेव नटराज स्वरूप यहीं स्थापित हो गए। इस कथा के कारण मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।
हर साल फरवरी-मार्च में आयोजित होने वाला 'नट्यांजलि नृत्य उत्सव' इस मंदिर की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करता है, जहां विश्वभर के नर्तक नटराज को अपनी कला समर्पित करते हैं।
--आईएएनएस
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