July 13, 2025 1:35 PM
नई दिल्ली, 13 जुलाई (आईएएनएस)। लीला चिटनिस का नाम जब सिनेमा के इतिहास में लिया जाता है, तो वह एक किरदार से नहीं, बल्कि एक सोच से जुड़ता है। उन्होंने जब अभिनय की दुनिया में कदम रखा, तब पर्दे पर महिलाएं या तो सजावट के तौर पर पेश की जाती थीं या दुख का प्रतीक होती थीं। लेकिन लीला ने इन दोनों छवियों को तोड़ा—पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और संवेदनशील महिला की छवि को पहली बार हिंदी सिनेमा ने उन्हीं के माध्यम से महसूस किया। समय के साथ खुद को ढालना भी बखूबी सीखा और इसका जिक्र अपनी आत्मकथा 'चंदेरी दुनियेत' में किया। रुपहले पर्दे पर निरुपा रॉय या सुलोचना से पहले करुणामयी मां का किरदार इन्होंने ही निभाया। इसलिए तो इन्हें हिंदी सिनेमा की 'डचेस ऑफ डिप्रेशन' और पहली ग्रेसफुल मां के भी तमगे से नवाजा गया।