स्मृति शेष : बूंदों के सौदागर नहीं, बूंदों के साधक, अनुपम मिश्र और उनकी अमर विरासत
नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। जिस दौर में पूरी दुनिया विकास की परिभाषा बड़े बांधों और कंक्रीट के हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग में खोज रही थी, ठीक उसी समय दिल्ली के 'गांधी शांति प्रतिष्ठान' के एक साधारण से कमरे में बैठा एक व्यक्ति उन पुरानी बावड़ियों और तालाबों की धूल झाड़ रहा था, जिन्हें आधुनिक भारत ने 'गड्ढा' समझकर भुला दिया था। खादी का कुर्ता, सौम्य मुस्कान और आंखों में सदियों पुराने ज्ञान की चमक, ये कोई और नहीं, बल्कि अनुपम मिश्र थे। एक ऐसे मनीषी, जिन्होंने कलम और कुदाल के बीच ऐसा रिश्ता जोड़ा कि भारत की सूखती नसों में फिर से जल की चेतना दौड़ने लगी।