वो औरत जो कभी चुप नहीं रही, कलम से किया विद्रोह; अदब, आग और आजादी की मिसाल
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। जब लड़कियों को खिलौनों से खेलना सिखाया जाता था, वो गिल्ली-डंडा लेकर मैदान में उतरती थी। जब उन्हें पर्दे में रखने की हिदायत दी जाती थी, वो खुले आसमान को अपनी किताब बना लेती थी। जब समाज ने कहा कि औरत का धर्म है सहना, वो बोली-'क्यों?' वो सिर्फ लिखती नहीं थी, जीती थी, हर उस सवाल को, जिससे समाज ने आंखें मूंद रखी थीं। उसके शब्द चुप नहीं थे, उसके वाक्य झिझकते नहीं थे। उसके किरदार काल्पनिक नहीं थे, वे उन आंगनों, रसोईघरों और उन दुपट्टों के पीछे की औरतें थीं जिनकी सांसें अक्सर दबा दी जाती थीं।