काजी नजरुल इस्लाम : वो कवि जो बगावत की आवाज बना, कामरेड से कवि और कवि से विद्रोही
नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। करीब 5 दशक पहले, 29 अगस्त 1976 को दुनिया ने उसे हमेशा के लिए खामोश होते हुए देखा, जिसने उपनिवेशवाद, असमानता और कट्टरता के खिलाफ कविता को हथियार बना दिया था। काजी नजरुल इस्लाम, जिन्हें लोग 'विद्रोही कवि' कहते हैं, वह सिर्फ एक कवि नहीं थे, बल्कि एक क्रांति थे। उनकी कविताएं और गीत बंगाल से निकलकर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी और न्याय की गूंज बन गई। बांग्लादेश ने उन्हें आधिकारिक रूप से अपना राष्ट्रीय कवि घोषित किया, लेकिन उनका प्रभाव भारत की मिट्टी और आत्मा में भी उतना ही गहरा है।