केसरबाई केरकर : सुरों की साधना से बनीं हिंदुस्तानी संगीत की अमर आवाज, जिनके मुरीद थे रवींद्रनाथ टैगोर

केसरबाई केरकर : सुरों की साधना से बनीं हिंदुस्तानी संगीत की अमर आवाज, जिनके मुरीद थे रवींद्रनाथ टैगोर

नई दिल्ली, 15 सितंबर (आईएएनएस)। हिंदुस्तानी संगीत में 'जयपुर घराना' अपनी खूबसूरत राग प्रस्तुति के लिए जाना जाता है, जिसमें स्वर और लय का तालमेल ऐसा होता है कि सुनने वाला भी इसकी गहराई में खो जाता है। इस शैली में मशहूर गायिका केसरबाई केरकर ने अपनी गायकी से सबको प्रभावित किया। 20वीं सदी की शुरुआत में उन्होंने देवदासी परंपरा छोड़कर एक सम्मानित कलाकार के रूप में नाम कमाया। उन्होंने 'जयपुर घराने' की कला को सरलता और सुंदरता के साथ पेश किया, जिसने उन्हें 'राग की रानी' (सुरश्री) बनाया।

संस्कृति मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, शास्त्रीय गायिका केसरबाई केरकर भारत की पहली गायिका हैं, जिनके गाए गीत 'जात कहां हो...' को अंतरिक्ष में भी भेजा गया।

केसरबाई की आवाज में रिकॉर्ड किए गए गीत 'जात कहां हो' को अंतरिक्ष यान वायजर-1 और वायजर-2 की मदद से साल 1977 में अंतरिक्ष में भेजा गया। नासा की तरफ से भेजे गए वायजर-1 अंतरिक्ष यान में 12 इंच की सोने की परत चढ़ी तांबे की डिस्क है, जिसमें संगीतकार बीथोवेन, योहान सेबास्तियन बाख और मोजार्ट तक के गाने रिकॉर्ड हैं। इसे 'द साउंड्स ऑफ अर्थ' एल्बम नाम दिया गया था।

13 जुलाई, 1892 को जन्मीं केसरबाई केरकर के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने कम उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। केसरबाई का परिवार जब कोल्हापुर में स्थानांतरित हुआ तब उनकी उम्र महज 10 साल थी और उसी दौरान उन्होंने उस्ताद अब्दुल करीम खान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की। हालांकि, बाद में उन्होंने पंडित वाजेबुआ, उस्ताद बरकतुल्लाह खान (बीन वादक) और पंडित भास्करबुवा बखले से संगीत सीखा।

वह साल 1921 में जयपुर-अतरौली घराने के संस्थापक उस्ताद अल्लादिया खान की शिष्या बनीं और करीब 11 साल तक उन्होंने शास्त्रीय संगीत की ट्रेनिंग ली। 1930 में उन्होंने पहली बार गायकी में हाथ आजमाया और जब तक अल्लादिया खान जीवित रहे, केसरबाई केरकर उनसे संगीत की शिक्षा लेती रहीं।

उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह बरकतुल्लाह खान से सीखे मिया मल्हार को गाने में असमर्थ रहीं। संयोग से केसरबाई को सिखाने के लिए बरकतुल्लाह को राजी करने वाले शहर के प्रसिद्ध दर्शक ने उनके प्रदर्शन की सार्वजनिक रूप से आलोचना की। इस असफलता और अपमान ने उन्हें निरंतर प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया।

उस्ताद अल्लादिया खान की शिष्या के रूप में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में अपनी अनूठी शैली विकसित की, जिसमें स्वरों की गहन समझ, लय की जटिलता और अप्रचलित रागों का मास्टरयूज शामिल था। उनकी गायकी नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर को भी बेहद पसंद थी। कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने 1938 में उनकी मधुर गायिकी सुनने के बाद उन्हें 'सुरश्री' की उपाधि से सम्मानित किया। टैगोर ने 'राग की रानी' के रूप में उनकी प्रशंसा करते हुए लिखा, "मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे केसरबाई की गायिकी सुनने का मौका मिला।"

1969 में केसरबाई को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और उनकी गिनती 20वीं सदी की सबसे प्रभावशाली गायिकाओं में से होती है। केसरबाई का निधन 16 सितंबर 1977 को मुंबई में हुआ। वे संवेदनशील और सख्त कलाकार थीं, जो अपनी कला के प्रति समर्पित रहीं।

--आईएएनएस

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