क्रांति के युवा स्तंभ : खुदीराम बोस का संघर्ष, हिम्मत और शहादत ने ब्रिटिश सत्ता को दी कड़ी चुनौती
नई दिल्ली, 2 दिसंबर (आईएएनएस)। साल 1908, तारीख 11 अगस्त, समय सुबह के ठीक 6:00 बजे थे और मुजफ्फरपुर जेल के बाहर हजारों लोगों का हुजूम जमा था। हर दिल में एक सवाल था कि क्या वाकई एक किशोर हंसते-हंसते मौत को गले लगाएगा? फांसी के तख्ते की ओर बढ़ते हुए, उस अठारह वर्षीय लड़के के चेहरे पर डर की एक लकीर तक नहीं थी। उसके होंठों पर एक शांत, अविचलित मुस्कान थी और हाथ में थी श्रीमद्भगवद्गीता।