देशबंधु चित्तरंजन दास : वकालत छोड़ स्वराज की मशाल जलाने वाले जादूगर
नई दिल्ली, 5 नवंबर (आईएएनएस)। ढाका के बिक्रमपुर के तेलिरबाग गांव में 5 नवंबर 1870 की सुबह, जब गंगा की लहरें अभी भी कोहरे में डूबी थीं, एक बालक ने जन्म लिया। नाम रखा गया- चित्तरंजन दास। लंदन से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे देशबंधु ने जितनी मजबूती से अपने मुवक्किलों के केस लड़े, उतनी ही दृढ़ता से स्वराज की मांग को भी उठाया। गांधीजी के असहयोग आंदोलन से मोतीलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज पार्टी बनाने में उनकी भूमिका अहम रही।