पटना, 8 अगस्त (आईएएनएस)। बिहार के पूर्णिया जिले में बसी कसबा विधानसभा सीट, जहां खेतों की हरियाली और बाढ़ की त्रासदी एक साथ सांस लेती हैं, 2025 के विधानसभा चुनाव में सियासी हलचल का केंद्र बनने को तैयार है। पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा यह ग्रामीण सीट, धान-जूट की खेती और पलायन की मजबूरी के बीच अपनी पहचान रखती है।
1967 से शुरू हुआ इसका सियासी सफर कांग्रेस के दबदबे से सजा रहा, लेकिन भाजपा, लोजपा, और समाजवादी पार्टी ने भी समय-समय पर यहां अपनी छाप छोड़ी। तकरीबन 40 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका और हिंदू वोटों का रुख इस सीट की हार-जीत तय करता है। यह सीट दो भौगोलिक हिस्सों—मैदानी और पठारी क्षेत्र—में बंटी हुई है।
पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर और पटना से करीब 355 किलोमीटर दूर स्थित कसबा मुख्य रूप से ग्रामीण इलाका है, जहां बिखरी हुई बस्तियां और छोटे-छोटे बाजार केंद्र हैं। यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है, जिसमें धान, मक्का और जूट प्रमुख फसलें हैं। मानसून के समय यह क्षेत्र अक्सर बाढ़ की चपेट में आ जाता है, जबकि रोजगार के लिए बड़ी संख्या में लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं।
राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1967 से अब तक यहां 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें कांग्रेस का दबदबा लंबे समय तक रहा। 1967 से 1985 तक कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1990 में जनता दल के शिवचरण मेहता ने कांग्रेस का किला तोड़ा, जबकि 1995, 2000 और अक्टूबर 2005 में भाजपा विजयी रही। फरवरी 2005 में समाजवादी पार्टी के मोहम्मद अफाक आलम ने जीत दर्ज की थी, जो अब कांग्रेस के नेता हैं।
आलम 2010, 2015, और 2020 में लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 2020 के चुनाव में उन्होंने लोजपा के प्रदीप कुमार दास को हराया, जो भाजपा से तीन बार विधायक रह चुके हैं और अब भी स्थानीय राजनीति में सक्रिय हैं।
कसबा सीट पर हिंदू बहुल आबादी है, लेकिन करीब 40 फीसदी मुस्लिम मतदाता चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अब तक छह बार मुस्लिम उम्मीदवार यहां से जीत चुके हैं।
2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस विधानसभा क्षेत्र की अनुमानित जनसंख्या 498250 है, जिनमें 255296 पुरुष और 242954 महिलाएं शामिल हैं। इस सीट पर कुल 293314 मतदाता हैं, जिनमें 152423 पुरुष, 140876 महिलाएं और 15 थर्ड जेंडर हैं।
ऐसे में 2025 का विधानसभा चुनाव कसबा में कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम के लिए अपनी चौथी जीत की चुनौती और अन्य दलों के लिए खोया गढ़ वापस पाने का बड़ा अवसर होगा। यहां का समीकरण मुस्लिम वोटों की एकजुटता और हिंदू वोटों के बिखराव पर निर्भर करेगा। यदि मुस्लिम वोट बैंक में दरार आई या संख्या घटी, तो भाजपा व लोजपा को बढ़त मिल सकती है, जबकि अफाक आलम के सामने अपना मजबूत गढ़ बचाने की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
--आईएएनएस
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