नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय राजनीति में कुछ ही नेता ऐसे हुए हैं, जिनमें शाही ठाठ, आधुनिक सोच और जमीन से जुड़ा व्यक्तित्व नजर आया है। 'माधव भाई' के नाम से मशहूर माधवराव सिंधिया ऐसे ही नेता थे। साल था 2001, तारीख थी 30 सितंबर, जब एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई।
10 मार्च 1945 को मुंबई में जन्मे माधवराव, ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। बचपन से ही खेलों और पढ़ाई में आगे रहे माधवराव ने जीवन का सफर विलासिता में शुरू जरूर किया, लेकिन जनता के बीच जाकर राजनीति को अपनी पहचान बनाई। साल था 1971, जब उन्होंने राजनीति की बुनियाद जनसंघ से रखी और पहले ही चुनाव में भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज कर देशभर में सुर्खियां बटोरीं।
सिंधिया परिवार ने अपनी राजनीतिक पारी जनसंघ से शुरू की, लेकिन बाद में माधवराव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1984 के आम चुनावों में उन्होंने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी को हराया। यह जीत न सिर्फ कांग्रेस के लिए बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए चर्चा का विषय बनी। जनसंघ-भाजपा का गढ़ माने जाने वाला ग्वालियर अचानक सिंधिया के किले में बदल गया।
1984 से 1998 तक उन्होंने ग्वालियर से लगातार जीत दर्ज की। 1996 में कांग्रेस से अलग होकर भी उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल की। दूसरी तरफ, उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना से लगातार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतती रहीं।
माधवराव सिंधिया राजनीति के साथ-साथ खेल, कला और संस्कृति से भी गहरा लगाव रखते थे। क्रिकेट, गोल्फ और घुड़सवारी उनके प्रिय शौक थे। वे न केवल खुद उम्दा खिलाड़ी थे, बल्कि बाद में क्रिकेट प्रशासक के रूप में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। कला और फिल्मों में भी उनकी गहरी रुचि थी। लोग अक्सर हैरान होते थे कि इतने शौकों के बावजूद वे राजनीति के लिए दिन में 12 घंटे से भी अधिक समय निकाल लेते थे।
रेल मंत्री रहते हुए माधवराव सिंधिया ने भारत में बुलेट ट्रेन का विचार सबसे पहले प्रस्तुत किया था। यह उनकी दूरदर्शिता का उदाहरण था। वहीं, नरसिंह राव सरकार में जब वे सिविल एविएशन मंत्री बने तो एक विमान दुर्घटना के बाद उन्होंने एक साल के अंदर ही नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया। राजनीति में इस तरह की नैतिकता उन्हें अलग पहचान देती थी।
राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस और देश की जनता की निगाहें कुछ चुनिंदा नेताओं पर टिक गई थीं। इनमें माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट सबसे आगे थे। माना जाता था कि सिंधिया राजीव गांधी की विरासत को आगे ले जा सकते हैं। हालांकि, राजनीति के समीकरण बदलते गए और अंततः नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।
30 सितंबर 2001 को एक दर्दनाक विमान दुर्घटना ने देश से अपने उस नेता को खो दिया, जिनमें अनुभव, ऊर्जा और भविष्य की उम्मीदें थीं। उनकी मौत के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आए, जो आज उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
--आईएएनएस
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