जन्मदिन विशेष : शरद केलकर ने सिर्फ चार दिन में तैयार किया 'शिवाजी महाराज' का किरदार

जन्मदिन विशेष: जब शरद केलकर ने सिर्फ 4 दिन में तैयार किया था 'शिवाजी महाराज' का किरदार

मुंबई, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। शरद केलकर, यह नाम भारतीय मनोरंजन जगत में एक ऐसी शख्सियत का प्रतीक है, जो अपनी दमदार आवाज, बहुमुखी अभिनय और कभी न हार मानने वाले शख्स के लिए जाना जाता है। 7 अक्टूबर 1976 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे शरद केलकर ने कभी सोचा नहीं था कि वह एक दिन 'बाहुबली' के मुख्य किरदार की आवाज बनेंगे या छत्रपति शिवाजी महाराज का किरदार निभाएंगे।

फिजिकल एजुकेशन में डिग्री और बाद में एमबीए के बाद शरद ने मुंबई की चकाचौंध वाली दुनिया में कदम रखा। यहां उन्होंने न केवल अभिनय की उड़ान भरी, बल्कि वॉयसओवर आर्ट की दुनिया में भी राज किया।

शरद केलकर का सफर 2004 में 'आक्रोश' से शुरू हुआ, लेकिन असली धमाल 'सिंदूर तेरे नाम का' और 'सात फेरे' जैसे शोज से मचा। 2009 में 'बैरी पिया' में ठाकुर दिग्विजय सिंह भदौरिया का किरदार निभाकर वह फेमस हो गए। इस किरदार के लिए उन्हें 2010 के गोल्ड अवॉर्ड्स में बेस्ट निगेटिव एक्टर का खिताब मिला।

उन्होंने 'रॉक-एन-रोल फैमिली' और 'पति पत्नी और वो' जैसे शो को होस्ट करके बताया कि वह एक दमदार होस्ट हैं। 2011 में 'उतरन' में सात्या का ग्रे शेड वाला रोल निभाकर उन्होंने साबित किया कि वह किसी भी किरदार को जीवंत कर सकते हैं।

शरद की फिल्मी दुनिया में एंट्री 2014 की मराठी ब्लॉकबस्टर 'लई भारी' से हुई, जहां खलनायक संगम के रोल ने उन्हें मराठी सिनेमा का चहेता बना दिया। बॉलीवुड में 'हाउसफुल 4' के सूर्यभान माइकल भाई ने कॉमेडी का जलवा बिखेरा, तो 'तान्हाजी : द अनसंग वॉरियर' में छत्रपति शिवाजी महाराज के अवतार ने इतिहास को जीवंत कर दिया। अक्षय कुमार की फिल्म 'लक्ष्मी' में लक्ष्मी के रोल ने उनकी रेंज दिखाई। वह एक बेहतरीन वॉयसओवर आर्टिस्ट भी हैं। उनके वॉयसओवर का मैजिक 'बाहुबली' सीरीज, हॉलीवुड और साउथ की कई फिल्मों में दिखाई देता है।

शरद केलकर से जुड़ा एक मजेदार किस्सा छत्रपति शिवाजी महाराज के किरदार से जुड़ा है, एक ऐसा किरदार जिसे निभाना अभिनय नहीं बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। अभिनेता शरद केलकर ने फिल्म 'तान्हाजी: द अनसंग वॉरियर' (2020) में यह प्रतिष्ठित भूमिका निभाई।

दिलचस्प बात यह है कि इस महानायक के किरदार को पर्दे पर उतारने के लिए शरद केलकर को महीनों नहीं, बल्कि सिर्फ चार दिनों का समय मिला था। इतने कम समय में उन्होंने किस तरह महाराज की गरिमा, शौर्य और शालीनता को आत्मसात किया, यह किस्सा किसी भी कलाकार के समर्पण की मिसाल है।

'तान्हाजी' फिल्म में शिवाजी महाराज का रोल भले ही छोटा था, लेकिन उसका भावनात्मक और ऐतिहासिक भार बहुत बड़ा था। मराठा साम्राज्य के संस्थापक की भूमिका में कोई भी कमी दर्शक स्वीकार नहीं करते।

समय की कमी के बावजूद शरद केलकर ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई। उन्होंने फिल्म की टीम के साथ मिलकर महाराज की चाल-ढाल, बैठने के तरीके और संवाद की शैली पर बहुत मेहनत की। उन्होंने समझा कि शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व सिर्फ रौबदार नहीं, बल्कि बहुत शालीन और शांत भी था।

शरद केलकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने किरदार को सिर्फ एक राजा के रूप में नहीं देखा, बल्कि एक ऐसे पिता, गुरु और दूरदर्शी नेता के रूप में देखा, जो अपने लोगों और सिद्धांतों के लिए अडिग खड़ा है। इस भावनात्मक जुड़ाव ने उन्हें ऊपरी हाव-भाव से हटकर, किरदार की आत्मा तक पहुंचने में मदद की।

शरद केलकर के समर्पण का नतीजा पर्दे पर साफ दिखा। जब वह महाराज के रूप में स्क्रीन पर आए, तो उनकी उपस्थिति ने दर्शकों को बांध लिया। उनकी आंखों में दिखने वाला गहरा विश्वास और शालीनता फिल्म के सबसे यादगार पलों में से एक बन गया।

उनका यह किरदार आलोचकों और दर्शकों दोनों को इतना पसंद आया कि कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि इस छोटी-सी भूमिका में उन्होंने शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व के साथ पूरा न्याय किया है।

--आईएएनएस

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