नई दिल्ली, 7 जुलाई (आईएएनएस)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सोमवार को विश्व जैव उत्पाद दिवस पर कहा कि केंद्र सरकार 2030 तक भारत में 300 बिलियन डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत के जैव प्रौद्योगिकी मिशन में व्यापक सार्वजनिक समझ और समावेशी भागीदारी का आह्वान करते हुए, सिंह ने कहा कि प्रत्येक भारतीय देश की जैव अर्थव्यवस्था में एक हितधारक है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत का जैव प्रौद्योगिकी तंत्र एक दशक पहले लगभग 50 स्टार्टअप से बढ़कर आज लगभग 11,000 हो गया है। नीतियों के समर्थन और संस्थागत भागीदारी से यह छलांग संभव हुई है।
हाल ही में लॉन्च की गई बायोई3 नीति का उल्लेख करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और समानता के साथ जैव अर्थव्यवस्था लक्ष्यों को संरेखित करके भारत को टिकाऊ जैव विनिर्माण में अग्रणी बनाने के लिए आधार तैयार करती है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, "जैव उत्पाद अब प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं रह गए हैं। बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग से लेकर पर्यावरण के अनुकूल व्यक्तिगत देखभाल तक, ग्रामीण रोजगार से लेकर हरित नौकरियों तक, वे आजीविका केसाधन बन रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि भविष्य की औद्योगिक क्रांति जैव अर्थव्यवस्था द्वारा संचालित होगी और उनका मानना है कि भारत ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाएगा।
इसके अतिरिक्त, केंद्रीय मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को “गेम-चेंजर” करार दिया, जो छात्रों को लचीलेपन के साथ रुचि के विषयों को आगे बढ़ाने की अनुमति देगा।
इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव और बीआईआरएसी के अध्यक्ष डॉ. राजेश एस. गोखले ने बायोई3 नीति को क्रियान्वित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में बताया।
इनमें पायलट विनिर्माण, क्षेत्र-विशिष्ट नवाचार मिशनों के लिए समर्थन और अनुसंधान से लेकर बाजार तक पाइपलाइन को मजबूत करना शामिल है।
उन्होंने स्केलेबल बायोटेक समाधानों के लिए शिक्षाविदों, स्टार्टअप्स और उद्योगों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करने में डीबीटी की भूमिका के बारे में भी चर्चा की।
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