नई फिल्म 'जटाधरा' का रहस्यमय सफर दर्शकों के लिए तैयार

नई फिल्म 'जटाधारा' का रहस्यमय सफर दर्शकों के लिए तैयार

निर्देशक: वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल, लेखक: वेंकट कल्याण, कलाकार: सुधीर बाबू, सोनाक्षी सिन्हा, दिव्या खोसला, शिल्पा शिरोडकर, इंदिरा कृष्णा, राजीव कनाकाला, रवि प्रकाश, रोहित पाठक, झांसी, सुभलेखा सुधाकर। फिल्म की अवधि: 135 मिनट। रेटिंग: 4 स्टार

जी स्टूडियोज और प्रेरणा अरोड़ा द्वारा प्रस्तुत फिल्म 'जटाधरा' ने भारतीय सिनेमा में एक नई तरह की चुनौती पेश की है। इसे वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने डायरेक्ट किया है, जबकि कहानी और स्क्रीनप्ले वेंकट कल्याण ने लिखे हैं। फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसका सुपरनैचुरल और माइथोलॉजिकल थ्रिलर होना है।

कहानी विज्ञान, आस्था और रहस्यवाद के बीच की सीमा पर खड़ी है। फिल्म का मुख्य सेट अनंत पद्मनाभ स्वामी मंदिर है, जो अपने खजानों और रहस्यों के लिए जाना जाता है। फिल्म में दिखाए गए तंत्र विद्या और मंत्र असल में शूटिंग के दौरान भी प्रयोग किए गए, जो इसे भारतीय सिनेमा में काफी अलग बनाता है।

फिल्म की शुरुआत से ही एक भयावह और रहस्यमय माहौल तैयार किया गया है। स्क्रीन पर दिखाई गई छायाएं, मंत्रोच्चारण और प्रतीकात्मक चित्रण दर्शकों को ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जहां वास्तविकता और कल्पना के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है। निर्देशक वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने यह सुनिश्चित किया है कि यह पौराणिक विषय सिनेमा के नजरिए से आकर्षक दिखे।

फिल्म का भावनात्मक केंद्र सुधीर बाबू के 'शिवा' नामक किरदार पर है। शिवा एक ऐसा व्यक्ति है जो पहले आत्माओं और भूतों पर विश्वास नहीं करता, लेकिन कहानी में धीरे-धीरे उसकी सोच बदलती है। सुधीर बाबू ने अपने किरदार में गहरी भावनाएं दिखाई हैं। उनके कुछ दृश्य, जैसे भूतों से सामना या तांत्रिक औजारों का इस्तेमाल करना, दर्शकों को सच में बांधे रखते हैं और उनके अभिनय को फिल्म का बड़ा आकर्षण बनाते हैं।

दूसरी तरफ, सोनाक्षी सिन्हा ने अपनी पहली तेलुगु फिल्म में दर्शकों को प्रभावित किया है। उन्होंने धन पिशाची नामक किरदार निभाया है, जो क्रोध और दुःख से बंधी हुई एक आत्मा है। उनके अभिनय में भय और त्रासदी का सही संतुलन देखने को मिलता है। उनकी आंखों की तीव्रता और हर एक फ्रेम में उनकी मौजूदगी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। उनका किरदार फिल्म का सबसे ध्यान खींचने वाला हिस्सा माना जा रहा है।

फिल्म में अन्य सह-कलाकार भी काफी प्रभावशाली हैं। दिव्या खोसला ने अपने किरदार 'सितारा' में हमेशा शालीनता और आकर्षण बनाए रखा। शिल्पा शिरोडकर और इंदिरा कृष्णा ने अपने किरदारों में गंभीरता और गरिमा दी। इसके अलावा, राजीव कनाकाला, रवि प्रकाश और सुभलेखा सुधाकर जैसी प्रतिभाएं फिल्म को एक वास्तविक और विश्वसनीय अनुभव देती हैं।

कहानी एक प्राचीन तांत्रिक अनुष्ठान 'पिशाच बंधनम' के इर्द-गिर्द घूमती है, जो आत्माओं को खजानों की रक्षा के लिए बांधता है। यह कहानी पुरानी मान्यताओं को आधुनिक नजरिए से दर्शकों के सामने पेश करती है।

संवादों की बात करें तो साईं कृष्ण और श्याम बाबू मेरिगा ने इसे बेहद प्रभावशाली बनाया है। संवाद न केवल विचारशील हैं, बल्कि आध्यात्मिक और भावपूर्ण भी हैं। फिल्म के कुछ डायलॉग्स जैसे 'विश्वास वह नहीं है जो आप देखते हैं, यह वह है जिसे आप महसूस करने का साहस करते हैं' दर्शकों के दिल और दिमाग दोनों पर असर डालते हैं।

फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी सिनेमैटोग्राफी है। समीर कल्याणी ने छायांकन के माध्यम से मंदिर के भव्य और रहस्यमय वातावरण को जीवंत किया है। केरल के प्राकृतिक दृश्य, मंदिर के अंदर की सजावट और दीपक की रोशनी से सजी झलकियां फिल्म को लगभग एक पेंटिंग की तरह पेश करती हैं। हर फ्रेम दर्शकों को एक अलग और जादुई दुनिया में ले जाता है।

स्पेशल इफेक्ट्स की बात करें तो फिल्म में डरावनी और अलौकिक दृश्यों को प्राकृतिक और रियलिस्टिक दिखाया गया है।

साउंड और म्यूजिक भी फिल्म के अनुभव को गहरा बनाते हैं। राजीव राज द्वारा रचित बैकग्राउंड स्कोर क्लासिकल और इलेक्ट्रॉनिक संगीत का मिश्रण है। विशेष रूप से क्लाइमेक्स में म्यूजिक की ताल और वातावरण दर्शकों की धड़कन बढ़ा देते हैं। साउंड डिजाइन में धीमी गूंज, मंत्र और अचानक का सन्नाटा डर को और प्रभावी बनाते हैं।

फिल्म में कुछ गाने जैसे 'शिवा स्तोत्रम' और 'पल्लो लटके अगेन' भी अपनी ऊर्जा के कारण अलग दिखते हैं। दिव्या खोसला का मंदिर नृत्य दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। साथ ही, स्टंट और एक्शन सीन्स में मार्शल आर्ट्स और डरावनी शक्तियों का सही मिश्रण है। सुधीर बाबू का घोस्ट-हंटिंग सीन और ब्लड-ड्रिंकिंग ट्रांसफॉर्मेशन जैसे एक्शन सीक्वेंस दर्शकों को बांधे रखते हैं।

'जटाधरा' एक साहसी और अनोखी फिल्म है। यह विजुअल, अभिनय, म्यूजिक और आध्यात्मिक तत्वों का बेहतरीन मिश्रण पेश करती है। फिल्म धर्म और विज्ञान, विश्वास और तर्क, मानव इच्छाशक्ति और दैवीय शक्ति के बीच संतुलन बनाती है। यह दर्शकों को डराने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर भी करती है। इस फिल्म के जरिए निर्देशक और कलाकारों ने भारतीय मिथक और अलौकिक कहानियों को शानदार तरीके से सिल्वर स्क्रीन पर उतारने में सफलता पाई है।

--आईएएनएस

पीके/एबीएम