नई दिल्ली, 24 नवंबर (आईएएनएस)। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की ने इस खेल में देश का नाम रोशन किया है। एक खिलाड़ी और खेल प्रशासक की भूमिका निभाने वाले दिलीप युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
25 नवंबर 1977 को ओडिशा के सुंदरगढ़ के आदिवासी परिवार में जन्मे दिलीप टिर्की के पिता विंसेंट टिर्की रिजर्व पुलिस बल में एक सिपाही थे।
विंसेंट टिर्की एक स्टेट-लेवल हॉकी प्लेयर थे। पिता के ही गुण दिलीप में आए। पिता ने ही बचपन में उनके हाथों में पहली बार 'स्टिक' थमाई थी।
साल 1989 में एक टैलेंट हंट प्रोग्राम के दौरान दिलीप स्पोर्ट्स हॉस्टल के लिए चुने गए थे। सौनरामुरा गांव से निकलकर दिलीप सुंदरगढ़ में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) हॉस्टल पहुंचे। इसके बाद उन्होंने नेहरू कप हॉकी टूर्नामेंट और नेशनल जूनियर टीम में जगह बनाई। साल 1994 में दिलीप इंडियन हॉकी जूनियर टीम में जगह बना चुके थे।
करीब एक साल बाद दिलीप को इंदिरा गांधी गोल्ड कप के लिए सीनियर पुरुष टीम में मौका मिला। बतौर डिफेंडर उन्होंने टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारतीय टीम में अपनी जगह बनाई।
दिलीप टिर्की को अटलांटा में 1996 के ओलंपिक के लिए इंडियन टीम में चुना गया। इसके बाद 2004 एथेंस ओलंपिक में बतौर कप्तान भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया।
दिलीप टिर्की ने साल 1995 से 2010 के बीच 412 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। इस दौरान दिलीप ने तीन ओलंपिक गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व किया।
दिलीप टिर्की उस टीम का हिस्सा रहे, जिसने एशियन गेम्स 1998 में गोल्ड मेडल, जबकि एशियन गेम्स 2002 में सिल्वर मेडल जीता था। इसके बाद उनकी मौजूदगी में भारतीय टीम ने एशिया कप 2003 और एशिया कप 2007 में गोल्ड मेडल जीते।
हॉकी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिलीप टिर्की को साल 2002 में 'अर्जुन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, जिसके बाद साल 2004 में 'पद्म श्री' से नवाजा गया। साल 2022 में उन्हें हॉकी इंडिया का अध्यक्ष चुना गया।
--आईएएनएस
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