मुंबई, 2 दिसंबर (आईएएनएस)। फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर एक एक्टर आए। लेकिन, एक ऐसा कलाकार आया जो हीरो नहीं, परमानेंट इमोशन बन गया। वह न परदे से उतरा, न दिलों से। बात हो रही है धर्मदेव पिशोरीमल आनंद यानी देवानंद की, जिन्हें हिंदी 'सिनेमा का देव' भी कहा जाता है।
देवानंद की पुण्यतिथि 3 दिसंबर को है। उनकी फिल्में तो अमर हैं ही, उनके जिंदगी के किस्से उससे भी ज्यादा मजेदार हैं।
ऐसे ही एक किस्से का जिक्र अभिनेत्री शायरा बानो ने किया था। उन्होंने बताया था, "लेबनान के बालबेक में खंडहरों के बीच गाना शूट हो रहा था। वहां जुटी विदेशियों की भीड़ ने चिल्लाना शुरू कर दिया, 'शम्मी कपूर… शम्मी कपूर।' वहां 'जंगली' सुपरहिट थी और भीड़ ने देव साहब को शम्मी कपूर समझ लिया। कोई और होता तो शायद नाराज हो जाता, मगर देवानंद ने मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया और जोर से बोले, “हां… हां… हेलो! मैं शम्मी कपूर हूं। उस दिन समझ आया कि देव साहब का दिल कितना बड़ा है।”
हर मुश्किल को स्टाइल में पार करना और फैंस को हमेशा मुस्कुराता चेहरा दिखाना, यही उनका तरीका था। उनका दिल सिर्फ बड़ा नहीं, बल्कि फैंस के लिए बेहद नाज़ुक भी था।
अपनी बायोपिक 'रोमांसिंग विद लाइफ' में उन्होंने खुद लिखा कि एक छोटी-सी बीमारी के लिए लंदन जाकर गुपचुप ऑपरेशन करवाया। किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। वजह? मेरे फैंस मुझे कभी कमजोर या बीमार नहीं देख सकते।
पंजाब के गुरदासपुर में पैदा हुए देवानंद फिल्मों में कदम रखने से पहले बॉम्बे के एक ऑफिस में काम करते थे और वहां बैठे अफसरों के प्रेम-पत्र पढ़ते थे। दिलचस्प बात है कि पत्नियों और प्रेमिकाओं को लिखे उन खतों में इतना रोमांस था कि उनकी सारी स्क्रिप्ट्स वहीं से तैयार होने लगीं।
एक दिन एक पत्र में लिखा मिला “बस करो।” वही दो शब्द पढ़कर उन्होंने नौकरी छोड़ी और सिनेमा की दुनिया में कदम रखा। इसके बाद उनकी लोकप्रियता तो बस मिसाल बनती गई।
--आईएएनएस
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