नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और यह समझाना कि मानसिक समस्याएं भी उतनी ही गंभीर होती हैं जितनी शारीरिक बीमारियां। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि आज के युवा तेजी से डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस जैसी मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।
तेज रफ्तार जीवनशैली, सोशल मीडिया का दबाव, करियर की अनिश्चितता और रिश्तों में अस्थिरता, ये सब युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहे हैं। आज का युवा लगातार खुद की तुलना दूसरों से करता है।
इंस्टाग्राम पर परफेक्ट लाइफ दिखाने की होड़ में वह अंदर से खालीपन महसूस करने लगता है। नौकरी का तनाव, पढ़ाई का दबाव, परिवार की अपेक्षाएं और असफलता का डर उसकी सोच को घेर लेते हैं। यही कारण है कि 16 से 30 वर्ष की उम्र के बीच डिप्रेशन के मामले सबसे अधिक बढ़ रहे हैं।
इसके अलावा, नींद की कमी, खराब खान-पान, शारीरिक गतिविधियों का अभाव, और डिजिटल लत भी इस समस्या को बढ़ा देते हैं। दिन-रात मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन में डूबे रहना न सिर्फ आंखों बल्कि दिमाग को भी थका देता है।
वहीं, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी कलंक बना हुआ है। लोग मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास जाने से कतराते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है। ऐसे में एक बात ध्यान देने वाली है कि भले ही व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ है, जरूरी नहीं कि वह मानसिक रूप से भी स्वस्थ हो।
डिप्रेशन से बचाव के लिए सबसे जरूरी है खुलकर बात करना। परिवार या दोस्तों के साथ अपने मन की बात साझा करना मानसिक बोझ को काफी हद तक हल्का कर सकता है। साथ ही, मेडिटेशन और योग जैसी चीजें मन को शांत रखने में मदद करती हैं।
पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और डिजिटल डिटॉक्स को भी अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए। यदि लक्षण गंभीर हों, तो विशेषज्ञ की मदद लेने में बिल्कुल संकोच नहीं करना चाहिए।
युवाओं के लिए यह समझना आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य कमजोरी नहीं, बल्कि इंसान की वास्तविक ताकत है। जिस तरह शरीर की बीमारी का इलाज संभव है, वैसे ही मन की उलझनों का भी समाधान है।
--आईएएनएस
पीआईएम/एबीएम