सावन विशेष : 237 फीट ऊंचाई और 123 फीट की प्रतिमा, तीन ओर समुद्र से घिरा ‘रामायण काल’ का यह मंदिर

सावन विशेष : 237 फीट ऊंचाई और 123 फीट की प्रतिमा, तीन ओर समुद्र से घिरा ‘रामायण काल’ का यह मंदिर

केनरा, 29 जुलाई (आईएएनएस)। देवाधिदेव महादेव को प्रिय सावन का महीना जारी है। देशभर के शिवालयों में शिवभक्तों की भीड़ है। इस खास अवसर पर हम आपको बताते हैं एक बेहद पौराणिक मंदिर के बारे में।

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के भटकल तालुक में स्थित मुरुदेश्वर मंदिर आध्यात्मिकता और खूबसूरत नक्काशी का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। अरब सागर के तट पर स्थित मुरुदेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो अपनी 123 फीट ऊंची शिव प्रतिमा और 237 फीट ऊंचे गोपुरम के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

तीन ओर से समुद्र से घिरी कंडुका पहाड़ी पर बना यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी द्रविड़ वास्तुकला और रामायण काल से जुड़ी पौराणिक कथा के लिए भी जाना जाता है। मुरुदेश्वर मंदिर का नाम भगवान शिव के एक रूप ‘मृदेस’ या ‘मुरुदेश्वर’ से लिया गया है। यह मंदिर कर्नाटक के तटीय क्षेत्र में मैंगलोर-कारवार राजमार्ग पर स्थित है, जहां पश्चिमी घाट और अरब सागर का मनमोहक मिलन होता है।

मंदिर परिसर में स्थापित 123 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है। इसे बनाने में लगभग दो वर्ष लगे।

मंदिर का 237 फीट ऊंचा राजा गोपुरम भारत का दूसरा सबसे ऊंचा गोपुरम है, जो 20 मंजिलों वाला है। पर्यटक लिफ्ट के जरिए गोपुरम की सबसे ऊपरी मंजिल तक पहुंचकर समुद्र और शिव प्रतिमा का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।

मुरुदेश्वर मंदिर की कथा शिव पुराण से जुड़ी है और रामायण काल के रावण से संबंधित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लंकापति रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें आत्मलिंग (शिव का सार) प्रदान किया, जो अमरत्व और असीम शक्ति का प्रतीक है। रावण को यह आत्मलिंग लंका ले जाना था, लेकिन देवताओं को यह डर था कि रावण इसका दुरुपयोग करेगा। इसलिए, देवताओं ने सूर्यास्त से पहले रावण को आत्मलिंग जमीन पर रखने के लिए मजबूर किया, क्योंकि नियम था कि एक बार आत्मलिंग जमीन पर रखा गया तो वह वहीं स्थापित हो जाएगा।

क्रोधित रावण ने आत्मलिंग को नष्ट करने की कोशिश की, लेकिन वह अटल रहा। इस प्रक्रिया में आत्मलिंग को ढकने वाला वस्त्र मुरुदेश्वर में गिर गया, जिसके कारण यह स्थान पवित्र माना जाने लगा। तब से यह मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन गया।

मुरुदेश्वर मंदिर चालुक्य और कदंब शैली की द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर परिसर में भगवान शिव की विशाल प्रतिमा के साथ-साथ एक सुनहरा सूर्य रथ भी है, जो भगवद् गीता के दृश्य को दिखाता है, जिसमें अर्जुन को भगवान कृष्ण से गीता का उपदेश प्राप्त हो रहा है।

मंदिर का राजा गोपुरम 20 मंजिलों वाला है और इसकी ऊपरी मंजिल से समुद्र, पहाड़ और शिव प्रतिमा का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। मंदिर के आसपास का समुद्र तट भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

कर्नाटक पर्यटन विभाग के अनुसार, मुरुदेश्वर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि एक प्रमुख पर्यटक स्थल भी है। समुद्र तट, मंदिर की भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य इसे देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं। मंदिर परिसर में गुफा मंदिर भी है, जहां रावण और आत्मलिंग की कहानी को मूर्तियों के माध्यम से उकेरा गया है।

सावन के महीने में मुरुदेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। भगवान शिव के भक्त यहां जलाभिषेक और रुद्राभिषेक जैसे धार्मिक आयोजनों के लिए आते हैं।

--आईएएनएस

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