नई दिल्ली, 30 जून (आईएएनएस)। भोलेनाथ को प्रिय सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू होने वाला है। उनके पूजन में बेल पत्र का खास महत्व है। महादेव की पूजा में अक्सर तीन पत्तियों वाले बेल पत्र को ही देखा जाता है। मगर कम ही लोग जानते हैं कि तीन ही नहीं, 6 और 21 पत्तियों वाले भी बिल्व पत्र होते हैं। शास्त्रों में इन पत्तियों का अलग-अलग महत्व है।
बिल्व पत्र, जिसे बेल पत्र या शिवद्रूम के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा में विशेष महत्व रखता है। 'बिल्वाष्टक' और 'शिव पुराण' के साथ ही पौराणिक ग्रंथों में भी बिल्व पत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह केवल एक वृक्ष ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और औषधीय गुणों का खजाना है, जो भक्तों को सिद्धि, समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य भी प्रदान करता है।
'श्रीमद् देवी भागवत' में उल्लेख है कि जो व्यक्ति मां भगवती को बिल्व पत्र अर्पित करता है, वह कभी दुख नहीं भोगता है। यह पत्र भक्तों को सिद्धियां प्रदान करता है, कई जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाता है और भगवान शिव का प्रिय बनाता है। इससे मनोकामना की पूर्ति भी होती है।
'शिव पुराण' में बिल्व पत्र को शिव और शक्ति का प्रतीक बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बिल्व वृक्ष की उत्पत्ति मां पार्वती के ललाट के पसीने से मंदार पर्वत पर हुई है।
बेल पत्र चार प्रकार के होते हैं, अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों वाले, छह से 21 पत्तियों और श्वेत बिल्व पत्र भी होते हैं। प्रत्येक का अपना आध्यात्मिक महत्व है।
अखंड बिल्व पत्र, 'बिल्वाष्टक' में इसे लक्ष्मी सिद्ध बताया गया है। यह एकमुखी रुद्राक्ष के समान दुर्लभ और शक्तिशाली है। इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है, ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इससे जीवन में चहुंमुखी विकास होता है और वास्तु दोष दूर होते हैं।
'बिल्वाष्टक' के अनुसार, तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र त्रिगुणों (सत, रज, तम) और त्रिनेत्र (शिव) का प्रतीक है। इसे धतूरे के फूल के साथ अर्पित करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
छह से 21 पत्तियों वाला बिल्व पत्र काफी दुर्लभ माना जाता है। यह नेपाल में पाए जाते हैं। लेकिन, भारत में भी कहीं-कहीं मिलते हैं। इनका महत्व रुद्राक्ष के समान है। वहीं, श्वेत बिल्व पत्र, प्रकृति की अनमोल देन माना जाता है। यह पत्र पूरी तरह सफेद होता है और शिव पूजा में अत्यंत शुभ माना जाता है।
बता दें, प्राचीन काल में बिल्व फल को 'श्रीफल' कहा जाता था, क्योंकि यह लक्ष्मी का प्रिय माना जाता था। पहले लक्ष्मी पूजा में बिल्व फल की आहुति दी जाती थी, जिसका स्थान अब नारियल ने ले लिया है। माना जाता है कि बिल्व वृक्ष में महालक्ष्मी का वास होता है।
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