नई दिल्ली, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 दिसंबर 1946 को एक ऐसा निर्णय लिया जिसने भविष्य की वैश्विक राजनीति को नई दिशा दी। न्यूयॉर्क शहर को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय का स्थायी घर चुना गया। यह सिर्फ एक जगह तय करने का निर्णय नहीं था, बल्कि युद्धोत्तर विश्व को स्थायी शांति और संवाद के मंच की तलाश में लिया गया ऐतिहासिक कदम था।
दूसरे विश्वयुद्ध की तबाही के बाद देशों को एक साझा संस्थान में लाना मानव इतिहास की सबसे बड़ी कूटनीतिक परियोजनाओं में से एक था, और इस परियोजना का केंद्र कहां होगा, उस पर महीनों बहस चली।
शुरुआत में लंदन, जिनेवा, सैन फ्रांसिस्को और फ़िलाडेल्फ़िया जैसे शहरों पर भी विचार हुआ, लेकिन अंतत: न्यूयॉर्क आगे आया। इस फैसले के पीछे कई राजनीतिक संकेत थे। अमेरिका नई महाशक्ति के रूप में उभर चुका था और संयुक्त राष्ट्र की मेजबानी उसकी बढ़ती वैश्विक भूमिका का प्रतीक बन सकती थी।
इसी दौर में अमेरिका के प्रतिनिधि वॉरेन आर. ऑस्टिन सबसे सक्रिय चेहरा बनकर उभरे। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में ऑस्टिन ने महासभा के भीतर और बाहर न्यूयॉर्क के समर्थन में लगातार माहौल बनाया। उन्होंने देशों को यह भरोसा दिलाया कि न्यूयॉर्क न सिर्फ सुविधाओं और सुरक्षा के लिहाज से बेहतर है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संवाद के लिए एक स्वाभाविक केंद्र बन सकता है।
उनकी इस भूमिका का विस्तृत जिक्र स्टैनली मीस्लर की प्रसिद्ध पुस्तक “द युनाइटेड नेशनंस: अ हिस्ट्री” में मिलता है, जहां कहा गया है कि यदि अमेरिका के राजनयिकों ने, विशेषकर ऑस्टिन ने, लगातार लॉबिंग न की होती, तो यूएन मुख्यालय शायद किसी और शहर में होता।
इस राजनीतिक प्रयास को निर्णायक मोड़ मिला तब, जब जॉन डी. रॉकफेलर जूनियर ने ईस्ट रिवर के किनारे लगभग साढ़े आठ मिलियन डॉलर की सहायता से वह जमीन खरीदकर संयुक्त राष्ट्र को दान दे दी, जिस पर आज यूएन की प्रतिष्ठित कांच की इमारतें खड़ी हैं। रॉकफेलर का यह निजी योगदान महासभा के लिए अंतिम निर्णय जैसा था, जिसने न्यूयॉर्क को सबसे व्यवहारिक और आकर्षक विकल्प बना दिया।
1952 में पूरा परिसर सक्रिय हुआ और तब से न्यूयॉर्क दुनिया की कूटनीति का धड़कता केंद्र है। यहीं से शांति मिशनों की रणनीतियां बनीं, मानवाधिकारों की घोषणाएं तैयार हुईं, अंतरराष्ट्रीय संकटों पर लंबी बहसें हुईं और युद्धविराम के प्रस्ताव लिखे गए। आज भी यह परिसर उस मूल भावना—वार्ता और सहयोग—को याद दिलाता है जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र बनाया गया था।
--आईएएनएस
केआर/