जयंती विशेष: मशहूर नाटक ‘कोणार्क’ के रचयिता जगदीश चंद्र माथुर, हिंदी से था खास लगाव, ‘एआईआर’ को दिया आकाशवाणी नाम

मशहूर नाटक ‘कोणार्क’ के रचयिता जगदीश चंद्र माथुर, जिन्होंने ‘एआईआर’ को दिया था आकाशवाणी नाम

नई दिल्ली, 15 जुलाई (आईएएनएस)। जब हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों की चर्चा होती है, तो कई दिग्गज लेखकों के नाम जहन में उभरते हैं, लेकिन एक नाम ऐसा है जिसने न केवल हिंदी नाटक साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि रेडियो नाटकों को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। यह नाम है जगदीश चंद्र माथुर का।

16 जुलाई 1917 को उत्तर प्रदेश के खुर्जा में जन्मे इस मशहूर नाटककार, कवि और लेखक ने अपनी लेखनी से ग्रामीण जीवन, सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया। उनकी कालजयी रचना ‘कोणार्क’ हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर साबित हुई, जो कला, संस्कृति और मानवीय संबंधों की गहनता को सामने लाती है।

आकाशवाणी के लिए लिखे गए उनके रेडियो नाटकों ने जनमानस तक साहित्य को पहुंचाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। माथुर की लेखन शैली में यथार्थवाद, भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक चेतना का अनूठा संगम देखने को मिलता है, जो उन्हें हिंदी साहित्य के अमर नाटककारों में शुमार करता है। 1955 में महानिदेशक बने तो 'एआईआर' आकाशवाणी बन गया और 1959 में जब टीवी का दौर आया तो इन्होंने ही दूरदर्शन नाम सुझाया था।

जगदीश चंद्र माथुर की शुरुआती शिक्षा खुर्जा में हुई। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) का रुख किया। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में भी रहे और विभिन्न सरकारी पदों पर काम किया।

माथुर को पहचान उनके लिखे नाटकों से मिली। उन्होंने अपने नाटकों में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर खूब लिखा। उनका सबसे मशहूर नाटक ‘कोणार्क’ (1951) है, जो कला, संस्कृति और मानवीय संबंधों की जटिलताओं को दर्शाता है। इसके अलावा उन्होंने ‘भोर का तारा’, ‘दशरथ नंदन’, और ‘शारदीया’ जैसे नाटकों के जरिए सफलता का स्वाद चखा।

माथुर ने आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) के लिए कई रेडियो नाटक लिखे, जो उस समय खूब लोकप्रिय थे। इन नाटकों ने आम जनता तक साहित्य को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेडियो पर उनकी प्रस्तुतियां अक्सर लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती थीं। उनके नाटकों में ग्रामीण जीवन और समाज के विविध पक्षों को उजागर किया गया। उन्होंने समाज में व्याप्त समस्याओं, संघर्षों और जटिलताओं को अपनी लेखनी में प्रभावशाली तरीके से पेश किया।

नाटकों के अलावा, उन्होंने कविताएं, निबंध और कहानियां भी लिखीं, जिनमें ग्रामीण जीवन और सामाजिक यथार्थ को प्रमुखता से सामने उठाया गया।

माथुर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों और सम्मानों से भी नवाजा गया। उनके लिखे नाटक ‘कोणार्क’ को विशेष रूप से सराहा गया। जगदीश चंद्र माथुर ही थे, जिन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर जनरल रहते समय उसका नामकरण आकाशवाणी किया था।

हिंदी साहित्य को नाटक और रेडियो नाटक के माध्यम से समृद्ध बनाने वाले जगदीश चंद्र माथुर ने 14 मई 1978 को दुनिया को अलविदा कह दिया। हालांकि, उनकी मौत के बाद भी उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य में जीवित हैं और नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं। कमलेश्वर ने कहा था कि उन्हें, सुमित्रानंदन पंत सरीखे लेखकों को माथुर साहब ने ही आकाशवाणी जैसा प्लेटफॉर्म दिया। वे हिंदी को सेतु मानते थे और उन्होंने ही एक मीटिंग में कहा था, ‘सरकार किसी भी भाषा से चलाई जाए, पर लोकतंत्र हिंदी और भारतीय भाषाओं के बल पर ही चलेगा। हिंदी ही सेतु का काम करेगी।"

--आईएएनएस

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