नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। मेजर सुधीर कुमार वालिया, भारतीय सेना का एक ऐसा जांबाज योद्धा, जो निडर था और देशभक्ति का जज्बा ऐसा कि खून का एक-एक कतरा भारत माता के नाम कुर्बान करने को तैयार। साथी उन्हें रैंबो' बुलाते थे। बेशक मेजर शारीरिक तौर पर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अमर गाथा कोई भूल नहीं सकता है।
29 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि देता है और उस सपूत को याद करता है, जिसने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता का मान बढ़ाया।
मेजर सुधीर वालिया के बहादुरी के किस्से को सेना के कर्नल आशुतोष काले ने किताब की शक्ल दी और किताब का नाम 'रैंबो' रखा। 9 पैरा स्पेशल फोर्सेज के मेजर सुधीर वालिया, जो अपने साथियों में रैंबो के नाम से ही मशहूर थे। जैसा उनका नाम था, वैसे ही उनके कारनामे भी थे।
सुधीर कुमार वालिया का जन्म 24 मई, 1969 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में एक सैन्य परिवार में हुआ था। मेजर वालिया हमेशा अपने पिता, सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया को आदर्श मानते थे और उनके पदचिन्हों पर चलकर भारतीय सेना में शामिल होने के लिए दृढ़ थे। उन्हें 11 जून 1988 को तीसरी जाट रेजिमेंट में कमीशन मिला था।
कर्नल आशुतोष काले की किताब 'रैंबो' में मेजर वालिया की कारगिल युद्ध के दौरान की कहानी का जिक्र है। मेजर वालिया के बारे में 'रैंबो' में लिखा है, "कारगिल की लड़ाई के समय सुधीर कुमार वालिया, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक के स्टाफ ऑफिसर थे, लेकिन वे विशेष अनुमति लेकर करगिल की पहाड़ियों में लड़ने गए। मेजर वालिया को जो टास्क मिला, उन्होंने उसे पूरा किया था।"
'रैम्बो' के नाम से मशहूर इस बहादुर योद्धा ने भारतीय सेना में विशिष्ट पहचान बनाई। कारगिल विजय के लगभग महीने भर बाद ही मेजर वालिया को नया टास्क मिला, जो कुपवाड़ा में छिपे आतंकियों के खात्मे के लिए था। 29 अगस्त 1999 को, मेजर वालिया ने कुपवाड़ा जिले में एक आतंकवादी ठिकाने पर हमले का नेतृत्व किया। वे 9 पैरा (स्पेशल फोर्सेज) का हिस्सा थे। 'बड़े ऑपरेशन' में भारत मां के इस लाल ने आतंकवादियों को मिट्टी में मिलाने का काम किया।
भारतीय सेना के सोशल मीडिया अकाउंट पर जिक्र मिलता है कि मेजर सुधीर कुमार वालिया गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अपने जवानों को निर्देश देते रहे और आतंकवादियों का सफाया सुनिश्चित किया।
इस भीषण संघर्ष में मेजर वालिया को गोली लग चुकी थी। इसके बावजूद, वह पीछे नहीं हटे। खून बहता है, लेकिन खतरों के खिलाड़ी मेजर वालिया आतंकियों का खात्मा किए बगैर नहीं हिले। अपना सर्वोच्च बलिदान देने से पहले उन्होंने 4 आतंकवादियों को ढेर कर दिया था।
दुश्मन के सामने उनकी अदम्य वीरता के लिए, मेजर सुधीर कुमार को मरणोपरांत सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पदक, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। 26 जनवरी 2000 को उनके पिता, पूर्व सूबेदार मेजर रुलिया राम वालिया ने अपने वीर पुत्र की ओर से भारत के राष्ट्रपति से पुरस्कार ग्रहण किया।
--आईएएनएस
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