पटना, 26 अगस्त (आईएएनएस)। नेपाल से सटा बिहार का लौकहा इलाका ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से बेहद खास माना जाता है। मधुबनी जिले की लौकहा विधानसभा सीट न सिर्फ मिथिला की समृद्ध विरासत की गवाही देती है, बल्कि कर्नाट राजवंश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से भी जुड़ी हुई है।
कर्नाट वंश के शासक नान्यदेव के शासनकाल से यह इलाका नेपाल के तराई क्षेत्रों तक फैला हुआ था, जब तक कि ब्रिटिश काल में तिरहुत के कुछ हिस्से नेपाल को नहीं सौंप दिए गए। यही वजह है कि आज भी नेपाल के ठाढ़ी शहर से निकटता इस क्षेत्र की सांस्कृतिक बनावट में साफ झलकती है।
लौकहा का भूभाग उत्तर बिहार की तरह ही समतल, उपजाऊ और बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। पास से बहने वाली भुतही बलान नदी छठ जैसे पर्वों पर श्रद्धालुओं का प्रमुख आकर्षण रहती है। परिवहन के लिहाज से यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग 57 के जरिए खुटौना और फुलपरास से जुड़ा हुआ है।
लौकहा में लौकहा बाजार रेलवे स्टेशन है, जो नेपाल बॉर्डर से सटा अंतिम रेलवे स्टेशन भी है। इसका दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन जयनगर है, जो 35 किमी दूर है। लौकहा भारत-नेपाल सीमा के पास है, जिसका राज्य राजमार्ग 51 (खुटुआना-लौकाहा रोड) का एक विस्तार इसे नेपाल के कई शहरों से जोड़ता है।
2024 के प्रोजेक्टेड जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, लौकहा की कुल आबादी 5.85 लाख से अधिक है, जिसमें 3 लाख पुरुष और 2.84 लाख महिलाएं शामिल हैं। 2024 की वोटर लिस्ट के मुताबिक, यहां कुल 3.5 लाख मतदाता हैं, जिनमें 1.81 लाख पुरुष, 1.68 लाख महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर शामिल हैं।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो लौकहा में मुस्लिम और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इनके अलावा ब्राह्मण, पासवान और रविदास समुदाय के मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं।
चुनावी आंकड़ों की बात करें तो पिछले दो विधानसभा चुनावों में यहां सियासी पेंडुलम झूलता रहा है। साल 2015 में जेडीयू के लक्ष्मेश्वर राय ने जीत हासिल की थी, वहीं 2020 में यह सीट राजद के भारत भूषण मंडल के खाते में गई। ऐसे में 2025 का मुकाबला बेहद दिलचस्प और कांटे का माना जा रहा है।
--आईएएनएस
डीसीएच/एबीएम