नई दिल्ली, 17 सितंबर (आईएएनएस)। 'हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। अपना अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट?' और 'पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ। कागज का कोटा झपट, करें एक के आठ।' काका हाथरसी की ये कविताएं हिंदी साहित्य में हास्य-व्यंग्य की अनमोल धरोहर हैं। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज की कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन पर तीखा व्यंग्य कसा, लेकिन हमेशा हास्य का तड़का देकर लोगों को हंसाते हुए सोचने पर मजबूर किया।
काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को हाथरस (उत्तर प्रदेश) में एक साधारण परिवार में हुआ। काका हाथरसी का असली नाम प्रभुलाल गर्ग था।
बताया जाता है कि उनकी पैदाइश के कुछ दिन बाद ही उनके सिर से पिता गोविंद गर्ग का साया उठ गया। 'प्लेग महामारी' के कारण उनके पिता की मौत हुई और इस कारण परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। प्लेग के उस दौर में जब पूरे इलाके में तबाही मच रही थी, काका का परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ। उन्होंने छोटी-मोटी नौकरियों के साथ-साथ संगीत की शिक्षा ली और कविता रचना शुरू की। संगीत में उनकी रुचि इतनी गहरी थी कि वे क्लासिकल संगीत के जानकार बने।
हाथरसी की गिनती अपने दौर के ऐसे कवियों में होती थी, जो कविता के जरिए लोगों को हंसाने के साथ-साथ समाज से जुड़े पहलुओं पर व्यंग्य भी करते थे। वह अपनी एक कविता में लिखते हैं, 'मन मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार, ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार। झूठों के घर पंडित बांचें, कथा सत्य भगवान की, जय बोलो बेईमान की।' ये पंक्तियां बेईमानों को आईना दिखाने के लिए काफी हैं।
काका हाथरसी हिंदी हास्य कविता के पुरोधा थे। उनकी कविताएं सरल भाषा में लिखी गईं, लेकिन उनमें गहरा व्यंग्य छिपा होता था। वे समाज की बुराइयों को हंसते-हंसाते उजागर करते थे, जिससे पाठक मनोरंजन के साथ-साथ चिंतन भी करता। उनकी शैली ने कई पीढ़ियों के कवियों को प्रभावित किया। उदाहरण के तौर पर उनकी प्रसिद्ध पंक्तियां, 'चीनी हमले से हुई, मिस 'चीनी' बदनाम। गुड़ की इज्जत बढ़ गई और बढ़ गए दाम। और बढ़ गए दाम, 'गुलगुले' तब बन पाए। सवा रुपए का एक किलो, गुड़ लेकर आए। कह 'काका', बीवी से बोला बुंदू भिश्ती। गजब हो गया बेगम गुड़ से चीनी सस्ती।' समाज के आर्थिक असमानताओं पर चोट करती हैं।
काका हाथरसी ने 42 से अधिक कृतियों की रचना की। इनमें अधिकतर हास्य पर आधारित हैं। उन्होंने 'वसंत' के उपनाम से भारतीय शास्त्रीय संगीत पर तीन पुस्तकें भी लिखीं।
इसके अलावा, काका हाथरसी ने अपने लेखन के जरिए संत्री हो या मंत्री हर किसी की आलोचना की। काका हाथरसी लिखते हैं, 'आए जब दल बदलकर नेता नन्दूलाल, पत्रकार करने लगे, ऊल-जलूल सवाल। ऊल-जलूल सवाल, आपने की दल-बदली, राजनीति क्या नहीं हो रही इससे गंदली। नेता बोले व्यर्थ समय मत नष्ट कीजिए, जो बयान हम दें, ज्यों-का-त्यों छाप दीजिए।'
काका हाथरसी के लिए 18 सितंबर की तारीख एक खास संयोग लेकर आती है। हिंदी साहित्य जगत के प्रमुख कवियों में शुमार काका हाथरसी ने अपने जन्मदिन पर ही दुनिया को अलविदा (18 सितंबर, 1995) कह दिया। वे कवि होने के साथ-साथ एक कुशल संगीतकार, चित्रकार और अभिनेता भी थे। उन्होंने हिंदी हास्य काव्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और 1985 में सरकार द्वारा 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया।
--आईएएनएस
एफएम/डीएससी