नई दिल्ली, 1 अगस्त (आईएएनएस)। गंगा प्रसाद बिड़ला (जी. पी. बिड़ला) भारत के प्रमुख उद्योगपति, परोपकारी और बिड़ला परिवार के सदस्य थे। भारत के सर्वोच्च प्रभावशाली परिवारों में से एक बिड़ला परिवार में जन्मे जी.पी. बिड़ला ने अपनी अलग राह बनाई और फिर बाद में उन्होंने अपने परिवार के व्यापारिक साम्राज्य के विस्तार और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2 अगस्त, 1922 को बनारस के प्रतिष्ठित बिड़ला परिवार में जन्मे गंगा प्रसाद बिड़ला को अक्सर 'जीपी' कहकर बुलाया जाता था। वे बलदेव दास बिड़ला के पोते, बृजमोहन बिड़ला के पुत्र और सी.के. बिड़ला के पिता थे। वे 1940 में बिड़ला परिवार के पहले स्नातक बने। एक शक्तिशाली विरासत में जन्मे जीपी ने अपना रास्ता खुद बनाया। उन्होंने परिवार की प्रभावशाली विरासत के बावजूद अपनी राह खुद चुनी। बाद में अपने उद्यमशीलता और परोपकारी प्रयासों के लिए पहचाने गए जीपी ने एक ऐसी विरासत छोड़ी, जिसने देश के औद्योगिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को बेहतर आकार दिया।
जीपी 1942 में बिड़ला समूह के बोर्ड में शामिल हुए और बाद में 1957 में इसके अध्यक्ष बने। 1969 में उन्होंने समूह की प्रमुख कंपनी 'हिंदुस्तान मोटर्स' से अपनी पारी की शुरुआत की और 1982 में इसके अध्यक्ष बने। उन्होंने कई महत्वपूर्ण औद्योगिक उपक्रमों की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें सीके बिड़ला समूह और नाइजीरियन इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक लिमिटेड के साथ एक संयुक्त उद्यम भी शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप नाइजीरिया इंजीनियरिंग वर्क्स की स्थापना हुई। इस उद्यम ने एक गतिशील और वैश्विक उद्योगपति के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को और मजबूत किया। बाद में उन्होंने बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान का नेतृत्व किया और प्रौद्योगिकी शिक्षा के क्षेत्र में इसके विकास और प्रमुखता में योगदान दिया।
जीपी ने हैदराबाद इंडस्ट्रीज लिमिटेड और कई शैक्षणिक संस्थानों जैसे बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बिड़ला आर्कियोलॉजिकल एंड कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, मॉडर्न हाई स्कूल फॉर गर्ल्स, कोलकाता, और बीएम बिड़ला हार्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट और कलकत्ता मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे कई सारे अस्पतालों की भी स्थापना की। उन्होंने हैदराबाद, जयपुर और भोपाल में मंदिरों का निर्माण कराया और ऐतिहासिक, स्थापत्य और धार्मिक महत्व के स्थानों के जीर्णोद्धार का समर्थन किया।
जीपी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने 'एन इंस्पायर्ड जर्नी' नामक एक संकलन की रचना की, जिसमें उन्होंने पुरातात्विक उत्खनन को बढ़ावा देने और संग्रहालयों के निर्माण से लेकर विज्ञान केंद्रों और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना तक, अपने व्यापक योगदानों का विस्तृत विवरण दिया है। उन्होंने अपनी औद्योगिक सफलता का उपयोग शिक्षा, चिकित्सा अनुसंधान और सांस्कृतिक संरक्षण को आगे बढ़ाने के साधन के रूप में किया। वो ऐसे उद्यमी थे, जिनके पास राष्ट्र के भविष्य में निवेश करने की दूरदर्शिता थी। वो ऐसे परोपकारी व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को गहराई से प्रभावित किया।
जीपी को शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के प्रति उनके समर्पण के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। अपने पूरे जीवन में, जीपी ने समाज को समृद्ध बनाने के लिए अपने परिवार की प्रतिबद्धता को कायम रखा। साथ ही उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जो इन उद्देश्यों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उनके व्यापक योगदान और विशिष्ट और उत्कृष्ट सेवा को ध्यान में रखकर भारत सरकार द्वारा 2006 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
5 मार्च, 2010 को 87 वर्ष की आयु में उन्होंने कोलकाता में अपनी अंतिम सांस ली।
--आईएएनएस
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