नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। अमेरिका की दुनिया में अपनी धमक जमाने के लिए कई देशों के मामलों में हस्तक्षेप की नीति रही है, जिससे पिछले दो तीन दशक में उसे भी भारी नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई देशों के मौजूदा हालात को देखते हुए और खुद को इकोनॉमिक सुपरपावर बनाए रखने के लिए अमेरिकी नीति में बड़ा बदलाव किया है।
अब वह दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में अमेरिकी दखल को खारिज करते हैं, स्थिरता लाने के लिए स्थानीय लोगों पर भरोसा जताते हैं और क्षेत्रीय और अमेरिकी दोनों हितों को सुनिश्चित करने के लिए व्यावसायिक अवसरों का इस्तेमाल करते हैं।
दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में कहा था कि अमेरिका अब दूसरे देशों पर अपनी शासन प्रणाली थोपने की कोशिश नहीं करेगा। मई 2025 में सऊदी अरब के रियाद दौरे पर ट्रंप ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा था कि शांति, समृद्धि और प्रगति विरासत को ठुकराने से नहीं, बल्कि अपनी राष्ट्रीय परंपराओं को अपनाने से आती है।
उन्होंने पिछली सरकार की 'हस्तक्षेपवादी' नीति से खुद को अलग करते हुए आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय साझेदारी और चुनिंदा रूप से बल प्रयोग करने की घोषणा की। वह चाहते थे कि सऊदी अरब में आधुनिक शासन 'अरबी तरीके' से हासिल किया जाए।
ट्रंप का मानना है कि मध्य पूर्व अराजकता से नहीं, बल्कि व्यापार से परिभाषित होगा'। उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के नाम पर अफगानिस्तान और इराक में 'विफल' हस्तक्षेप की आलोचना की। उन्होंने लिबरल लॉबी पर भी बिना कुछ हासिल किए खरबों डॉलर खर्च करने का आरोप लगाया। अमेरिकी राष्ट्रपति के रियाद दौरे के अंत में सऊदी अरब ने अमेरिका में 600 बिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश की घोषणा की।
अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने डोनाल्ड ट्रंप से सहमति जताते हुए 1 नवंबर को बहरीन के सालाना सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि पिछले अमेरिकी हस्तक्षेपों ने टैक्स देने वालों के संसाधनों को बर्बाद किया और दोस्तों से ज्यादा दुश्मन पैदा किए थे।
अमेरिकी राष्ट्रपति पूरी तरह से अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और उनका तरीका व्यापार घाटे को ठीक करना, विविधता, समानता और समावेशिता संबंधी परियोजनाओं में कटौती करना और 'अमेरिका फर्स्ट' सिद्धांत के तहत प्रवासन को रोकना है। संघर्षों में हस्तक्षेप न करने की इसी नई नीति के कारण अमेरिका इजरायल-हमास युद्ध को रोकने के लिए संघर्ष विराम कराने और इजराइल और ईरान के बीच 12 दिनों के संघर्ष परविराम लगाने में सक्षम हुआ।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ऐसी नीतियों पर काम कर रहे हैं जिनका उद्देश्य दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना और अमेरिका को सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था बनाना है। हालांकि, उन्हें इस बात का भी एहसास हो चुका है कि अब उन्हें चुनौती देने के लिए चीन भी सामने खड़ा है।
यही कारण है कि कभी वह चीन पर मनमाना टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अब उसके साथ व्यापार को सहजता से आगे बढ़ा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण दक्षिण कोरिया में आसियान समिट के दौरान शी जिनपिंग और ट्रंप की मुलाकात के दौरान देखने को मिला।
30 अक्टूबर को दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई वन-ऑन-वन मीटिंग से एक बड़ा आर्थिक समझौता हुआ, जिसने भविष्य के लिए ट्रेंड सेट किया।
चीन ने अमेरिका को रेयर अर्थ मिनरल्स के एक्सपोर्ट पर से कंट्रोल हटा लिया है, अमेरिकी सोयाबीन और दूसरे एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स के लिए चीनी बाजार खोल दिया है और अमेरिकी सेमी-कंडक्टर मैन्युफैक्चरर्स पर लगी रोक हटा दी है। बदले में, अमेरिका ने चीनी सामानों पर टैरिफ 10 परसेंट कम करके 47 परसेंट कर दिया है, जबकि चीन ने अपने कुछ जवाबी टैरिफ एक साल के लिए सस्पेंड कर दिए।
चीन की तरह ट्रंप की नजर रूस ही नहीं बल्कि उन सभी देशों पर है, जहां से अमेरिका को व्यापार में लाभ मिल सकता है। इस मुलाकात के दौरान टैरिफ से लेकर रेयर अर्थ एलिमेंट तक उन सभी मुद्दों पर सकारात्मक चर्चा हुई, जिनकी वजह से दोनों देशों के बीच टकराव देखा जा रहा था।
ट्रंप को पता है कि चीन दूसरे देशों को प्रभावित करने के आर्थिक साधन के रूप में अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का विस्तार कर रहा है। इसके साथ ही अमेरिका इस बात से भी इत्तेफाक रखता है कि चीन दुनिया पर अपना दबदबा बनाने के लिए तकनीक विकसित कर रहा है।
दूसरी ओर ट्रंप ये भी जानते हैं कि चीन और रूस के बीच की दोस्ती कितनी गहरी है। यही कारण है कि मनमाना टैरिफ लगाकर बवाल मचाने के बाद ट्रंप शांति से व्यापार वार्ता के जरिए अमेरिका के लिए फायदेमंद अवसरों की तलाश कर रहे हैं।
--आईएएनएस
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