नई दिल्ली, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। दुनिया के कई देशों में स्वास्थ्य बहस अब भी बुनियादी सुविधाओं, बीमारियों और दवाओं तक सीमित रहती है, लेकिन दक्षिण कोरिया ने 2025 में एक ऐसी बहस को केंद्र में ला दिया जिसने वैश्विक ध्यान खींचा। दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली जे म्युंग ने बाल झड़ने यानी हेयर लॉस को केवल सौंदर्य से जुड़ी समस्या मानने से इनकार करते हुए इसे “सर्वाइवल का मामला” बताया और इसके इलाज को सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने की जरूरत पर जोर दिया।
मंगलवार (16 दिसंबर) को एक पॉलिसी ब्रीफिंग के दौरान घोषित किया गया था, और यह कुछ खास तरह के बालों के झड़ने के लिए अभी उपलब्ध सीमित मेडिकल ट्रीटमेंट से कवरेज को बढ़ाएगा।
दक्षिण कोरिया में एक यूनिवर्सल इंश्योरेंस स्कीम चलती है, जिसे इनकम के आधार पर कैलकुलेट किए गए प्रीमियम से फंड किया जाता है। फिलहाल, यह स्कीम सिर्फ मेडिकल कारणों से होने वाले बालों के झड़ने को कवर करती है, जैसे कि 'एलोपेसिया एरेटा।' आम तौर पर पुरुषों में होने वाले गंजेपन के ज्यादातर इलाज कवरेज से बाहर हैं।
राष्ट्रपति के इस बयान के बाद कोरिया में गंजापन अचानक हल्की-फुल्की चर्चा का विषय नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, आत्मसम्मान और सामाजिक दबाव से जुड़ा गंभीर मुद्दा बन गया। उनका कहना है कि बाल झड़ने की समस्या लाखों युवाओं और वयस्कों को प्रभावित कर रही है, जिससे अवसाद, सामाजिक अलगाव और आत्मविश्वास में कमी जैसी स्थितियां पैदा हो रही हैं। ऐसे में इसे सिर्फ कॉस्मेटिक समस्या कहकर नजरअंदाज करना सही नहीं है।
दक्षिण कोरिया पहले से ही सौंदर्य और आत्म-छवि को लेकर दुनिया के सबसे जागरूक समाजों में गिना जाता है। के-पॉप संस्कृति, कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच बाहरी रूप-रंग को लेकर दबाव बहुत गहरा है। 2024 में युवाओं पर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 98 फीसदी ने माना कि आकर्षक लोगों को सामाजिक फायदे मिलते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, बाल झड़ने की समस्या वहां कई लोगों के लिए करियर, रिश्तों और मानसिक स्थिरता से सीधे जुड़ जाती है। राष्ट्रपति के बयान ने इसी सामाजिक सच्चाई को राजनीतिक मंच पर ला दिया।
राष्ट्रपति ने सबसे पहले इस पॉलिसी का प्रस्ताव 2022 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान एक उम्मीदवार के तौर पर दिया था, तब उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली थी। उस समय इसकी आलोचना लोकलुभावन वादा कहकर की गई थी।
इस प्रस्ताव पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। कुछ लोगों ने इसे “अमीरों की समस्या” कहकर आलोचना की और सवाल उठाया कि जब गंभीर बीमारियां अब भी पूरी तरह कवर नहीं हैं, तब गंजेपन पर सरकारी खर्च क्यों हो। वहीं दूसरी ओर, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और युवा वर्ग ने इसे समय की जरूरत बताया और कहा कि आधुनिक समाज में मानसिक पीड़ा को शारीरिक बीमारी से अलग नहीं देखा जा सकता।
सरकार से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, अभी यह केवल एक नीति-स्तरीय सुझाव है, लेकिन अगर इसे लागू किया गया तो हेयर लॉस से जुड़े कुछ चिकित्सा उपचारों को आंशिक या पूर्ण बीमा कवर मिल सकता है। यह कदम न केवल स्वास्थ्य नीति की परिभाषा बदलेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि भविष्य में “स्वास्थ्य” को किस नजरिए से देखा जाए।
--आईएएनएस
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