बालाजी बाजीराव: मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग के निर्माता, दिल्ली से अटक तक फैलाया साम्राज्य

बालाजी बाजीराव: मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग के निर्माता, दिल्ली से अटक तक फैलाया साम्राज्य

पुणे, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। मात्र 19 वर्ष की आयु में अपने पिता बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा पद संभालने वाले नानासाहेब पेशवा उर्फ बालाजी बाजीराव की 8 दिसंबर को जन्मजयंती है। वे मराठा इतिहास के सबसे चर्चित और विवादास्पद पेशवाओं में से एक रहे, जिन्हें मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग का निर्माता भी कहा गया।

इतिहासकार बालाजी बाजीराव को 'मराठा साम्राज्य का वास्तविक सम्राट' कहते हैं। बालाजी बाजीराव को विरासत में एक विशाल लेकिन अस्थिर साम्राज्य मिला था। उनके पिता बाजीराव बल्लाल ने मालवा, बुंदेलखंड और गुजरात तक मराठा झंडा फहराया था, पर उत्तर भारत में अभी मुगल बादशाह की सत्ता बची हुई थी। नानासाहेब ने सबसे पहले आंतरिक एकता पर ध्यान दिया। उन्होंने सदाशिवराव भाऊ, मल्हारराव होल्कर, जनकोजी शिंदे और रघुजी भोसले जैसे बड़े सरदारों को एक सूत्र में बांधा।

बालाजी बाजीराव के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य का अभूतपूर्व विस्तार हुआ। इस दौरान मराठा साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया था। दिल्ली के मुगल दरबार में मराठों का डंका बजता था। 1752 में उन्होंने मुगल बादशाह अहमद शाह से संधि कराई, जिसमें मराठों को पश्चिमी भारत में चौथ-सारदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिला। 1758 में मराठों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और पंजाब तक अपनी सेना भेजी। इस दौरान अटक तक मराठा झंडा लहराया गया। कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा और बंगाल तक मराठा सेनाएं चौथ वसूलने पहुंचती थीं।

नानासाहेब ने पुणे को मराठों की राजधानी बनाकर शनिवारवाड़ा को भव्य महल बनवाया। आज भी शनिवारवाड़ा उनके वैभव का प्रतीक है। उन्होंने मराठी को राजकीय भाषा बनाया और संस्कृत और मोदी लिपि को प्रोत्साहन दिया। पेशवा दरबार में दामोदर पंत, नारायण दीक्षित और रामशास्त्री जैसे विद्वान नियुक्त किए गए। कर-प्रणाली को व्यवस्थित किया गया और किसानों को राहत दी गई।

बालाजी बाजीराव का सबसे बड़ा दुर्भाग्य 14 जनवरी 1761 का तीसरा पानीपत युद्ध रहा। सदाशिवराव भाऊ के नेतृत्व में 80 हजार मराठा सैनिकों ने अहमद शाह अब्दाली से मुकाबला किया। युद्ध में मराठा सेना पराजित हुई। विश्वासराव पेशवा (नानासाहेब के सबसे बड़े पुत्र), सदाशिवराव भाऊ और हजारों मराठा सरदार मारे गए। जब यह दुखद समाचार पुणे पहुंचा तो 23 जून 1761 को मात्र 40 वर्ष की आयु में गहरे शोक से बालाजी बाजीराव का देहांत हो गया। मराठा इतिहास में इसे 'पेशवा का शोकांत' कहा जाता है।

बाजीराव को लेकर कई विवाद भी हैं। दरअसल, कई इतिहासकार नानासाहेब को पानीपत की पराजय के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने भाऊ को सेना का पूर्ण कमान देकर स्वयं पुणे में रहना पसंद किया। साथ ही उत्तर भारत में मराठा अत्याचारों और चौथ वसूली से स्थानीय जनता में असंतोष भी बढ़ा था, जिसका फायदा अब्दाली को मिला।

फिर भी यह निर्विवाद है कि बालाजी बाजीराव ने बाजीराव प्रथम के सपने को साकार किया। उनके शासन में मराठा साम्राज्य हिंदुस्तान का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था। उनकी मृत्यु के बाद मराठा संघ टूटने लगा और अंततः 1818 में अंग्रेजों ने इसे समाप्त कर दिया। आज भी मराठा समाज में नानासाहेब पेशवा को 'महाराज' कहकर याद किया जाता है।

--आईएएनएस

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