कर्नाटक : आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना ने कलबुर्गी की जगदेवी की बदली जिंदगी, तय किया बड़े सपनों का सफर

कर्नाटक : आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना ने कलबुर्गी की जगदेवी की बदली जिंदगी, तय किया बड़े सपनों का सफर

कलबुर्गी, 29 जून (आईएएनएस)। कर्नाटक के कलबुर्गी जिले की कल्याण की रहने वाली जगदेवी चंद्रकांत नीलागर की कहानी मेहनत, समर्पण और आत्मनिर्भरता की एक मिसाल है। कभी गरीबी में जीवन यापन करने वाली जगदेवी ने अपने संकल्प और कठिन परिश्रम के बल पर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण किया, बल्कि एक छोटे से व्यवसाय को बड़े पैमाने के उद्यम में बदलकर कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गईं। उनकी कहानी आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (एबीआरवाई) के तहत महिलाओं के सशक्तीकरण और आर्थिक स्वावलंबन का जीवंत उदाहरण है।

जगदेवी ने अपने घर से शुरुआत की थी। आर्थिक तंगी के बीच उन्होंने ज्वार की रोटी बनानी शुरू की। उत्तर कर्नाटक में ज्वार की रोटी एक लोकप्रिय व्यंजन है, और जगदेवी ने इसकी मांग को पहचानकर इसे अपने व्यवसाय का आधार बनाया। शुरुआत में वह छोटे पैमाने पर रोटियां बनाती थीं, लेकिन उनकी गुणवत्ता और स्वाद के कारण मांग बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय को विस्तार दिया और मूंगफली की चटनी, मूंगफली पोली जैसे अन्य पारंपरिक व्यंजनों को भी शामिल किया, जो खासकर उत्तर कर्नाटक में काफी पसंद किए जाते हैं।

जैसे-जैसे उनका व्यवसाय बढ़ा, जगदेवी के लिए अकेले मांग पूरी करना मुश्किल होने लगा। उन्होंने अन्य महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और उन्हें रोजगार देकर न केवल उनकी मदद की, बल्कि अपने व्यवसाय को और मजबूत किया। इस दौरान "आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना" उनके लिए वरदान साबित हुई।

उन्होंने इस योजना के तहत पांच लाख रुपए का ऋण लिया, जिससे उन्होंने और महिला मजदूरों को जोड़ा। मांग बढ़ने पर उन्होंने ऋण राशि को बढ़ाकर 15 लाख रुपए किया और बाजरा पीसने की मशीन खरीदी। बाद में बढ़ती मांग को पूरी करने के लिए उन्होंने रोटी बनाने की मशीन भी खरीदी। इन निवेशों ने उनके व्यवसाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

जगदेवी चंद्रकांत नीलेगर ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बातचीत के दौरान बताया कि जैसे-जैसे दिन बीतते गए, हमारा व्यवसाय बढ़ता गया और हमारे पास जो कुछ मजदूर थे, उनसे हमारा काम नहीं चल पा रहा था। इसलिए हमने 'आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना' का अच्छा लाभ उठाया। पहले हमने पांच लाख रुपए का लोन लिया था। उसके बाद कई और महिला मजदूरों को जोड़ा। चूंकि मांग बढ़ रही थी इसलिए हमने लोन की राशि बढ़ाकर 15 लाख रुपए कर दी। इस राशि से हमने बाजरा पीसने की मशीन ले ली। और जैसे-जैसे ज्वार, बाजरा की रोटी की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई, हमने रोटी बनाने की मशीन भी ले ली।

जगदेवी के बेटे सिद्दू ने बताया, "हमने पांच किलो ज्वार से व्यवसाय शुरू किया था, और आज हम टनों में बेच रहे हैं। मेरी मां ने न केवल सभी ऋण चुका दिए, बल्कि अपने व्यवसाय को पूरी तरह आत्मनिर्भर बना लिया। उन्होंने अपने खेतों में ज्वार उगाना शुरू किया और 20-25 महिलाओं को अपने साथ जोड़ा। इन महिलाओं को रोजगार देकर उन्होंने उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया और एक बेहतर जीवन प्रदान किया। मेरी मां की कहानी महिला सशक्तीकरण और उत्थान का प्रतीक है।"

--आईएएनएस

एकेएस