भारत का डीएनए एक, मान्यताएं हो सकती हैं अलग-अलग : आचार्य सुनील सागर

भारत का डीएनए एक, मान्यताएं हो सकती हैं अलग-अलग : आचार्य सुनील सागर

अहमदाबाद, 27 अगस्त (आईएएनएस)। दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने भारतीय संस्कृति, समरसता और वर्तमान वैश्विक चुनौतियों को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की जड़ें ऋषभदेव से जुड़ी हुई हैं और भारतवर्ष की सारी व्यवस्थाएं उनके वंश की इच्छाओं से चलती आई हैं।

दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने आईएएनएस से कहा, "भारत की सारी संस्कृति ऋषभ देव के वंश की इच्छाओं से चालू होती है। श्रीराम भी इच्छाओं के वंश ही हैं। उनके एक पुरखे रघु के नाम से रघुवंश जरूर कहलाए, लेकिन वे सभी इच्छाओं के वंश ही हैं। उसके बाद सारी व्यवस्थाएं राजा महाराजा के द्वारा व्यवस्थित होती रहीं। उस तरह से जब हम विचार करते हैं, तो हमारे देश का डीएनए एक है।"

उन्होंने कहा, "मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं। एक घर में दो भाइयों की मान्यताएं अलग-अलग होती हैं। यहां पर भी पूजा पद्धति को लेकर देवताओं के आकार-प्रकार को लेकर मान्यताएं अलग-अलग हो सकती हैं। बाकी हम सभी भारतवासी धरती के वासी हैं। हम सब का वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास है। जो मूलतः भारतवासी हैं उन्हें हम एक डीएनए वाला कह सकते हैं।"

उन्होंने कहा, "जब हम अव्यवस्थित होते हैं, आपस में लड़ते हैं, या अपने मूल सिद्धांतों का पालन नहीं करते, तो कोई भी आकर हम पर हमला कर सकता है, हमें ताना मार सकता है, या नियंत्रण कर सकता है। इसलिए भारतीयों को अपने मूल मूल्यों के प्रति सच्चे रहते हुए सद्भावना से रहना चाहिए।"

अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने पर, दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने कहा, "यह एक तानाशाही और अनुचित कदम है। इसका जवाब स्वदेशी पर निर्भर रहना और अपने संसाधनों को महत्व देना है। हमें उनके साथ व्यापार को यथासंभव सीमित रखने का प्रयास करना चाहिए।"

उन्होंने कहा, "जो धन देश के बाहर जा रहा है वह देश में ही खप जाए तो ज्यादा अच्छा है। कोशिश करें कि कम से कम उनसे हमारा लेन-देन हो ताकि उन्हें भी सबक मिले कि कठोर कदम उठाने का क्या परिणाम होता है।"

उन्होंने आगे कहा कि सारे धर्म का यहीं संदेश है, "क्षमा करें और क्षमा मांग लें, जीत है इसमें हार नहीं है। क्षमा वीर का आभूषण है, कायर का शृंगार नहीं है।"

--आईएएनएस

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