नई दिल्ली, 21 जुलाई (आईएएनएस)। 'तिरंगा' शब्द सुनते ही न केवल देशभक्ति, एकता और बलिदान की भावना जागृत होती है, बल्कि इस नाम की अपने आप में एक गौरवमयी गाथा भी है। यह वह प्रतीक है, जिसके लिए 'मां भारती' के अनगिनत सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी और आजादी के सपने को साकार किया। 22 जुलाई, 1947, ये वो तारीख है, जब संविधान सभा द्वारा तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। यह दिन हर भारतीय के लिए तिरंगे के सम्मान और इसके महत्व को गहराई से समझने का अवसर है।
हर एक आजाद देश का अपना एक राष्ट्रीय ध्वज होता है, जो उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुता का प्रतीक है।
'नॉ इंडिया' वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' को उसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा की बैठक में आधिकारिक रूप से अपनाया गया। यह ऐतिहासिक निर्णय भारत की आजादी से कुछ ही दिन पहले लिया गया था। 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक तिरंगा 'डोमिनियन ऑफ इंडिया' का राष्ट्रीय ध्वज रहा। इसके बाद, जब भारत एक गणतंत्र बना, तब से यह भारत गणराज्य का राष्ट्रीय ध्वज है। भारत में 'तिरंगे' का अर्थ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज है, जो देश की एकता, गौरव और बलिदान की भावना को दर्शाता है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की पट्टियां हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है, और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चौड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां हैं।
'तिरंगे' में मौजूद तीनों रंग और चक्र भी अलग-अलग संदेश देते हैं। भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है, जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। इसके अलावा, 'धर्म चक्र' को विधि का चक्र कहते हैं, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन सदैव गतिशील है।
'तिरंगे' के वर्तमान स्वरूप को अपनाने से पहले इसमें कई बार बदलाव किया गया था, जिसके बाद इसे अंतिम रूप से स्वीकार किया गया। शुरुआत में 1931 में पिंगली वेंकय्या द्वारा प्रस्तावित डिजाइन में चरखा था, जिसे बाद में महात्मा गांधी के सुझाव पर अशोक चक्र से बदल दिया गया था।
'नॉ इंडिया' वेबसाइट के अनुसार, 26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और आजादी के कई साल बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्री में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते हैं, बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरतापूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें।
राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय गौरव की याद दिलाता है। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी संस्थानों में ध्वज के सम्मान और इसके प्रतीकात्मक महत्व को समझाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तिरंगा न केवल एक ध्वज है, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और विविधता में एकता का प्रतीक है।
--आईएएनएस
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