नई दिल्ली, 9 जुलाई (आईएएनएस)। जोहरा सहगल का नाम भारतीय सिनेमा और थिएटर की दुनिया में एक खास मुकाम रखता है। वह सिर्फ एक बेहतरीन अभिनेत्री ही नहीं थीं, बल्कि अपनी जिद और हिम्मत की वजह से भी काफी मशहूर थीं। उनकी जिंदगी का सबसे दिलचस्प किस्सा वह था, जब उन्होंने अपनी शादी टालने के लिए जानबूझकर 10वीं की परीक्षा में तीन बार फेल होना चुना था।
उस जमाने में लड़कियों की शादी जल्दी करा दी जाती थी और पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती थी। जोहरा के परिवार वालों ने भी उनकी शादी जल्दी करने की सोच रखी थी। लेकिन जोहरा पढ़ाई के लिए बहुत आगे बढ़ना चाहती थीं, इसलिए टॉपर रहने के बावजूद वह तीन बार 10वीं की परीक्षा में फेल हुईं, जिसके चलते परिवार वालों को मजबूरन उनकी शादी रोकनी पड़ी।
उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में 27 अप्रैल 1912 को एक मुस्लिम परिवार में जन्मीं जोहरा का पूरा नाम साहिबजादी जोहरा मुमताज उल्लाह खान बेगम था। उनका बचपन उत्तराखंड के चकराता में बीता। बचपन में ही उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। जोहरा ने अपनी पढ़ाई लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज से पूरी की, जो उस वक्त देश का पहला इंटरनेशनल स्कूल माना जाता था। उस समय लड़कियों को पढ़ाई के लिए भेजना एक बड़ी बात थी और जोहरा को मिला यह मौका उनकी जिद और हिम्मत को बयां करता है।
पढ़ाई पूरी करने के बाद, 1930 में जोहरा यूरोप चली गईं। उन्होंने जर्मनी के ड्रेसडेन में मेरी विगमैन के बैले स्कूल में तीन साल तक मॉडर्न डांस की पढ़ाई की। यह उस वक्त किसी भारतीय लड़की के लिए बहुत बड़ी बात होती थी। उन्होंने अपनी मेहनत और हिम्मत से साबित कर दिया कि महिलाएं भी किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। 1935 में, जोहरा सहगल ने नृत्य गुरु उदय शंकर के साथ डांसर के तौर पर अपना करियर शुरू किया। वह जापान, मिस्र, यूरोप और अमेरिका में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी थीं। इसी दौरान उनकी मुलाकात कामेश्वर सहगल से हुई, जो एक वैज्ञानिक, डांसर और पेंटर थे।
कामेश्वर उनसे आठ साल छोटे थे और धर्म में भी अलग थे। जोहरा ने बिना किसी डर के उनसे शादी कर ली। इस शादी को लेकर उनके परिवार में खूब विवाद हुआ, लेकिन उन्होंने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। शादी के बाद जोहरा अपने पति के साथ लाहौर चली गईं और वहां उन्होंने 'जोहरा डांस इंस्टिट्यूट' नाम से अकादमी शुरू की।
साल 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद, लाहौर में दंगे होने लगे, तो जोहरा को अपनी एक साल की बच्ची और पति के साथ मुंबई आना पड़ा। यहां उन्होंने फिर से अपनी कला और अभिनय को आगे बढ़ाया। उन्होंने पृथ्वी थिएटर से जुड़कर रंगमंच में भी काम किया और फिल्मी दुनिया में कदम रखा। उनकी पहली फिल्म 1946 में आई 'धरती के लाल' थी। इसके बाद उन्होंने चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' में काम किया, जिसे कान फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार भी मिला।
जोहरा सहगल ने केवल अभिनय ही नहीं किया, बल्कि कोरियोग्राफर के तौर पर भी काम किया। उन्होंने राज कपूर की 'आवारा' और गुरुदत्त की 'बाजी' जैसी फिल्मों में कोरियोग्राफी की।
उनका फिल्मी करियर सात दशक से भी ज्यादा लंबा था। उन्होंने 'दिल से', 'हम दिल दे चुके सनम', 'कभी खुशी कभी गम', 'वीर-जारा', 'सांवरिया' जैसी फिल्मों में भी यादगार भूमिका निभाई।
साल 2007 में आई सोनम कपूर और रणबीर सिंह की फिल्म 'सांवरिया' उनकी आखिरी फिल्म थी।
जोहरा सहगल ने अपने अभिनय और कला के लिए कई पुरस्कार भी हासिल किए। उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें संगीत नाटक अकादमी का भी सम्मान मिला।
जोहरा सहगल ने 10 जुलाई 2014 को 102 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा। उन्होंने अपने पूरे जीवन में यह साबित किया कि अगर हिम्मत और जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य मुश्किल नहीं। उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार और समाज के बंधनों को तोड़ा, बल्कि एक कलाकार के रूप में भी अपनी अलग पहचान बनाई।
--आईएएनएस
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