नई दिल्ली, 19 अक्टूबर (आईएएनएस)। हर साल 20 अक्टूबर को 'वर्ल्ड ऑस्टियोपोरोसिस डे' मनाया जाता है। इस दिन का मकसद लोगों को हड्डियों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना है। आज के समय में अधिकतर लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। खासकर महिलाओं में 50 की उम्र के बाद ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या अधिक देखने को मिलती है।
ऑस्टियोपोरोसिस को आम भाषा में समझें तो यह ऐसी स्थिति है, जिसमें हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, उनका घनत्व कम हो जाता है और जरा सी चोट या दबाव में भी फ्रैक्चर हो सकता है। अक्सर लोग इसके बारे में तब तक नहीं जानते जब तक हड्डी टूट न जाए, इसलिए इसे खामोश बीमारी भी कहा जाता है।
डॉक्टरों के मुताबिक, यह बीमारी उम्र बढ़ने, हार्मोनल बदलाव और कैल्शियम या विटामिन डी की कमी से जुड़ी होती है। आमतौर पर कूल्हे, कलाई या रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर इस बीमारी के शुरुआती संकेत होते हैं। झुककर चलना, बार-बार दर्द रहना या चोट के बाद देर से ठीक होना इसके लक्षण हो सकते हैं।
आयुर्वेद की मानें, तो ऑस्टियोपोरोसिस का सीधा संबंध वात दोष के असंतुलन से होता है। जब वात दोष बढ़ता है, तो शरीर की मजबूती कम होने लगती है और हड्डियों का घनत्व घटने लगता है।
दिलचस्प बात यह है कि यह समझ आधुनिक विज्ञान से भी मेल खाती है, क्योंकि विज्ञान भी कहता है कि उम्र और हार्मोनल बदलाव हड्डियों को प्रभावित करते हैं।
आयुर्वेद में इस बीमारी को रोकने और ठीक करने के लिए कई तरीके बताए गए हैं। सबसे पहले आता है रसायन चिकित्सा, यानी शरीर को भीतर से मजबूत बनाना। यह उम्र से जुड़ी गिरावट को धीमा करती है।
दूसरा है तेल मालिश। महानारायण तेल, दशमूल तेल या चंदनाबाला लक्षादि तेल से मालिश करने से हड्डियों और जोड़ों को गहराई से पोषण मिलता है।
तीसरा उपाय है हर्बल दवाएं, जैसे लक्षा गुग्गुलु, महायोगराज गुग्गुलु, प्रवला पिष्टी और मुक्ता शुक्ति भस्म। ये पारंपरिक औषधियां हड्डियों की मजबूती बढ़ाने में मदद करती हैं।
साथ ही खानपान और जीवनशैली पर भी जोर दिया गया है। आयुर्वेद कहता है कि घोड़ा चना, अदरक, लहसुन, ड्रमस्टिक और ऐश लौकी जैसे भोजन हड्डियों को मजबूत करते हैं। अनार, आम और अंगूर जैसे फल शरीर में पौष्टिकता बनाए रखते हैं।
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