नई दिल्ली, 23 अक्टूबर (आईएएनएस)। हर साल 24 अक्टूबर को विश्व पोलियो दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य पोलियो के प्रति जागरूकता फैलाना और बच्चों को बचाना है। पोलियो मुख्य रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। यदि समय पर इलाज और टीकाकरण न किया जाए, तो यह बीमारी बच्चों को पैरालिसिस यानी लकवा जैसी गंभीर स्थिति में डाल सकती है, जिससे शरीर के कुछ हिस्से ठीक से काम नहीं कर पाते।
पोलियो एक वायरस से फैलने वाली बीमारी है, जो संक्रमित व्यक्ति के मल, पेशाब या दूषित पानी और भोजन के माध्यम से अन्य बच्चों तक पहुंच सकती है। इसके शुरुआती लक्षण सामान्य बुखार, सिर दर्द, उल्टी, गर्दन और कमर में अकड़न जैसे साधारण लक्षणों से मिलते-जुलते होते हैं, इसलिए पोलियो की पहचान करना कभी-कभी मुश्किल हो सकता है। यही कारण है कि बच्चों को समय पर पोलियो वैक्सीन देना बेहद जरूरी है।
पोलियो से बचाव के लिए दो प्रकार की टीकाएं उपयोग में लाई जाती हैं। पहली है एक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन, जिसे जन्म के बाद बच्चों को दिया जाता है ताकि भविष्य में पोलियो का खतरा न रहे। दूसरी है ओरल पोलियो वैक्सीन, जो कई देशों में बच्चों को पिलाई जाती है।
भारत में भी छोटे बच्चों को 5 साल की उम्र तक पोलियो की दवा नियमित रूप से दी जाती है। इस प्रयास का उद्देश्य है कि बच्चे बड़े होकर पोलियो जैसी गंभीर बीमारी का सामना न करें और उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहे।
भारत ने पिछले 20 वर्षों में पोलियो उन्मूलन के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। व्यापक टीकाकरण अभियान और सरकारी पहल के चलते भारत 2014 में पोलियो मुक्त घोषित हुआ। हालांकि, पोलियो का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, इसलिए जागरूकता और टीकाकरण अभियान लगातार जारी हैं।
विश्व पोलियो दिवस केवल स्मरण दिवस नहीं है, बल्कि यह माता-पिता, स्वास्थ्यकर्मियों और समाज के लिए एक चेतावनी और जिम्मेदारी भी है। यह हमें याद दिलाता है कि बच्चों को पोलियो से बचाने के लिए समय पर वैक्सीन देना, सफाई का ध्यान रखना और सार्वजनिक जागरूकता फैलाना आवश्यक है।
--आईएएनएस
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