उत्तराखंड में गुप्त रूप से क्यों विराजमान हैं भोलेनाथ? जानिए पौराणिक कथा

उत्तराखंड में गुप्त रूप से क्यों विराजमान हैं भोलेनाथ? जानिए पौराणिक कथा

रुद्रप्रयाग, 6 नवंबर (आईएएनएस)। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में बसा गुप्तकाशी एक ऐसा तीर्थस्थल है, जो रहस्यों और भक्ति दोनों से भरा हुआ है। समुद्र तल से करीब 1,319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान अपने नाम की तरह ही गुप्त रहस्यों को समेटे हुए है। यहां स्थित विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव का वह धाम है, जहां वे स्वयं गुप्त रूप में विराजमान हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण में आए, तो शिव उनसे रुष्ट होकर हिमालय के इस क्षेत्र में छिप गए। पांडवों ने बहुत तपस्या की, लेकिन भगवान शिव गुप्त ही रहे। यही कारण है कि इस जगह का नाम गुप्तकाशी पड़ा। हालांकि, बाद में शिवजी केदारनाथ में प्रकट हुए, लेकिन उनकी इस लीला ने गुप्तकाशी को पवित्र बना दिया।

यही नहीं, गुप्तकाशी शिव और पार्वती की प्रेम कथा का भी एक अहम हिस्सा है। मान्यता है कि यहीं मां पार्वती ने भगवान शिव को विवाह का प्रस्ताव दिया था। वर्षों की कठोर तपस्या के बाद जब पार्वती ने शिव का हृदय जीता, तब गुप्तकाशी में ही उनके विवाह की बात तय हुई। बाद में उनका विवाह त्रियुगी नारायण मंदिर में संपन्न हुआ, लेकिन उस दिव्य मिलन की शुरुआत यहीं हुई थी। इसलिए यह स्थान उन श्रद्धालुओं के लिए खास है जो वैवाहिक सुख, प्रेम और एकता की कामना करते हैं।

मंदिर की बनावट भी अद्भुत है। पत्थरों से बना यह प्राचीन मंदिर नागर शैली की झलक दिखाता है। गर्भगृह में स्थित शिवलिंग अत्यंत प्राचीन है और यहां की अर्धनारीश्वर मूर्ति शिव और शक्ति के संतुलन की प्रतीक मानी जाती है।

मंदिर के सामने दो पवित्र धाराएं गंगा और यमुना बहती हैं, जिनका जल बेहद शुद्ध और पवित्र माना जाता है। यहां एक अक्षय दीपक भी सदैव जलता रहता है, जिसे भगवान शिव की अनंत उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।

कहा जाता है कि केदारनाथ की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक भक्त गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर में दर्शन न करें। यहां की ऊर्जा, वातावरण और भक्ति का माहौल इतना पवित्र है कि यहां आने वाले हर भक्त के मन को शांति और आत्मिक सुकून की अनुभूति होती है।

--आईएएनएस

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