नई दिल्ली, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। 78 साल, 190 देश, करोड़ों बच्चों की उम्मीद का नाम है यूनिसेफ। हर साल 11 दिसंबर को दुनिया भर में यूनिसेफ दिवस मनाया जाता है। 78 साल पहले (11 दिसंबर 1946) द्वितीय विश्व युद्ध की तबाही के बीच संयुक्त राष्ट्र ने एक खास संगठन बनाया था, जिसे नाम दिया- संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष।
उस वक्त यूरोप के लाखों बच्चे भूख, बीमारी और बेघर होने की मार झेल रहे थे। यूनिसेफ की शुरुआत सिर्फ इन्हीं बच्चों को दूध, दवा और कपड़े पहुंचाने के लिए हुई थी। किसी ने नहीं सोचा था कि यह अस्थायी कोष कभी बंद होने की बजाय दुनिया का सबसे बड़ा बाल अधिकार संगठन बन जाएगा। साल 1953 में इसका नाम बदलकर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) कर दिया गया, लेकिन मकसद वही रहा, हर बच्चे तक पहुंचना, चाहे वह किसी भी देश, धर्म या हालात का हो।
यूनिसेफ 190 से ज्यादा देशों और क्षेत्रों में काम करता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा टीका प्रदाता है, हर साल अरबों डोज बच्चों तक पहुंचाता है। युद्ध, भूकंप, बाढ़ या सूखे जैसी आपदाओं में सबसे पहले पहुंचकर बच्चों को भोजन, दवा, टेंट और सुरक्षा देता है। स्कूल से बाहर बच्चों को पढ़ाई से जोड़ता है, गांव-गांव में स्वच्छ पानी और शौचालय की व्यवस्था कराता है।
बाल मजदूरी, बाल विवाह, हिंसा और शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है और कानून बनवाने में सरकारों की मदद करता है। यही नहीं, जलवायु परिवर्तन से बच्चों को बचाने के लिए भी नई-नई योजनाएं चला रहा है।
भारत में पोलियो उन्मूलन, मिड-डे मील, आंगनवाड़ी व्यवस्था मजबूत करना और कोविड वैक्सीनेशन जैसी तमाम बड़ी मुहिमों में यूनिसेफ का अहम योगदान रहा है। खास बात यह है कि यूनिसेफ सरकारों से पैसा नहीं लेता, पूरी तरह लोगों के दान पर चलता है। हर रुपया पारदर्शी तरीके से खर्च होता है, 90 प्रतिशत से ज्यादा राशि सीधे बच्चों तक पहुंचती है।
प्रियंका चोपड़ा, आयुष्मान खुराना और कीर्ति सुरेश के साथ ही करीना कपूर जैसे सितारे यूनिसेफ से जुड़े हैं और अपनी आवाज से बच्चों की मदद करते हैं। यूनिसेफ का मूलमंत्र 'कोई बच्चा पीछे न छूटे' है। वह चाहे सीरिया का शरणार्थी बच्चा हो, अफ्रीका में सूखे से जूझता बच्चा हो या भारत के किसी दूरदराज गांव की बच्ची, सबको मदद मिलनी चाहिए।
--आईएएनएस
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