शंकराचार्य के अधूरे काम पूरे करने के लिए उनकी आत्मा ने पटेल को चुना : आरिफ मोहम्मद खान

'भारत: दैट इज इंडिया' पुस्तक लोकार्पण में शामिल हुए बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान

नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित एक पुस्तक लोकार्पण एवं चर्चा के कार्यक्रम में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव शामिल हुए। इस दौरान 'भारत : दैट इज इंडिया - रिक्लेमिंग अवर रियल आइडेंटिटी' किताब का विमोचन भी किया गया।

इस किताब को सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। कार्यक्रम का आयोजन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, कला निधि प्रभाग ने किया था। इसमें मुख्य अतिथि के तौर पर बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. राम माधव शामिल हुए थे।

कार्यक्रम में बोलते हुए बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, “हमारे देश में हमें पश्चिमी देशों द्वारा परिभाषित दायरे में खुद को फिट करने की आवश्यकता नहीं है। हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? हम केवल एक राष्ट्र-राज्य नहीं हैं, हम एक सांस्कृतिक राष्ट्र हैं, हम एक आध्यात्मिक राष्ट्र हैं।”

उन्होंने कहा कि 1,100-1,200 साल पहले इस पुस्तक का ज्ञान पहले से ही मौजूद था। वास्तव में यूनेस्को ने भी माना है कि ऋग्वेद दुनिया की सबसे पुरानी पुस्तक है। उन्होंने इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है। अगर यह ज्ञान शुरू से ही लोगों के मन में न बैठा होता, तो शंकराचार्य इतनी सहजता से अपना काम पूरा नहीं कर पाते।

उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति, भारतीय राष्ट्र, यदि दुनिया को इसका कोई अनूठा योगदान है तो वह है कि भारतीय संस्कृति ने मानवता का दिव्यकरण किया और दिव्यता का मानवीकरण किया। क्या कोई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता से कोई राष्ट्र बन सकता है? आध्यात्मिक क्षेत्र में भारत कभी पीछे नहीं रहा, लेकिन राजनीति में भारत का रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। हम हर वक्त आपस में लड़ते रहे हैं।

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि जब भारत राजनीतिक रूप से टुकड़ों में बंटा था, तब शंकराचार्य निकले और पूरे देश को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से जोड़ दिया। मुझे ऐसा लगता है कि उनकी आत्मा ने चैन से नहीं बैठने दिया और उनके अधूरे काम को पूरा करने के लिए उनकी आत्मा ने सरदार पटेल के रूप में जन्म लिया। जब भी मैं इस पुस्तक के किसी विषय पर चर्चा करता हूं तो एक विचार मन में आता है, समय के साथ शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, आजकल हम ‘धर्म’ को ‘रिलिजन’ के समान मानते हैं, जो मेरे विचार से गलत है। अमृतकोश में धर्म की 18 परिभाषाएं हैं, जिनमें से सबसे कम महत्वपूर्ण परिभाषा ‘रिलिजन’ से संबंधित है। धर्म, अपने मूल में, अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के बारे में है।

उन्होंने आगे कहा कि ‘स्वकर्म धर्म विमुखाः कृष्ण कृष्णेति वादिनम्, ते हरे कृष्ण मुर्खे’ जो लोग अपने कर्तव्यों से विमुख हैं, कृष्ण का विरोध करते हैं और उनके विरुद्ध बोलते हैं। वे मूर्ख भी हैं और हरि के शत्रु भी, क्योंकि हरि धर्म की स्थापना के लिए अवतरित होते हैं। धर्म अपने स्वभाव से आदेशात्मक है। व्यक्ति को हर परिस्थिति में यह विचार करना चाहिए कि उसका कर्तव्य क्या है। इसमें सनातन धर्म, योग धर्म, देश धर्म (राष्ट्र के प्रति कर्तव्य) और सबसे बढ़कर स्वधर्म व्यक्ति का अपना व्यक्तिगत कर्तव्य शामिल है।

उन्होंने कहा कि किसी भौगोलिक इकाई को ‘राष्ट्र-राज्य’ कहने का विचार पहले अस्तित्व में नहीं था। दुनिया में शासन के केवल दो रूप थे, साम्राज्य और कबीले। जब कोई साम्राज्य विस्तार करना चाहता था तो वह कबीलों पर आक्रमण करता और उन्हें अपने में समाहित कर लेता था। इस्लाम का उदाहरण लीजिए, इस्लाम से पहले अरब केवल कबीलों से बना था जो लगातार युद्धरत रहते थे। जब कोई साम्राज्य इन कबीलों पर विजय प्राप्त करता था तो इन हत्याओं की कोई व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं होती थी, वे केवल एक सामूहिक समूह का हिस्सा होते थे।

इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव ने कहा कि आज से 34 साल पहले जब बाबरी ढांचा गिरा था तो बहुत बड़ा हंगामा हुआ था। वह दिन इस घटना के लिए याद किया जाता है, जो बदलाव का प्रतीक बन गया। इसके बाद की घटनाओं का क्रम हमें उस मुकाम पर ले आया है, जहां हमें लगता है कि भारत अपनी वास्तविक क्षमता की ओर बढ़ रहा है।

किताब के लेखक अभिजीत जोगी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि भारत की असली पहचान क्या है? किसी भी देश की सबसे महत्वपूर्ण और मूल्यवान चीज क्या होती है? मेरे विचार से किसी देश की पहचान सबसे मूल्यवान चीज होती है। दुर्भाग्य से भारत की असली पहचान को गलत तरीके से पेश किया गया। हमारी वास्तविक पहचान मिटा दी गई और एक झूठी पहचान थोप दी गई। मैं भारत की असली पहचान जानना चाहता था, इसलिए मैंने यह किताब लिखने का फैसला किया। इस दौरान मुझे कई ऐसी बातें पता चलीं जो आम लोगों को पता ही नहीं हैं। मुझे लगा कि इन्हें लोगों तक पहुंचाना चाहिए, इसलिए मैंने यह किताब लिखी।

--आईएएनएस

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