तंजावुर, 22 जुलाई (आईएएनएस)। सावन का पवित्र महीना चल रहा है, और देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा है। तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अपनी अद्भुत वास्तुकला के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। 1000 वर्ष से भी पुराना यह मंदिर चोल वंश की भव्यता का प्रतीक है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल इस मंदिर का 80 टन वजनी शिखर और भूकंप के झटकों को सहने की क्षमता हर किसी को हैरत में डालती है।
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, बृहदेश्वर मंदिर की वास्तुकला और शिलालेख इसे अनूठा बनाते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर भी है, जो चोल वंश की शक्ति और कला को दिखाता है।
भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर, जिसे 'पेरुवुदैयार कोविल' भी कहते हैं, द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका 200 फीट ऊंचा विमान (शिखर) दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिर शिखरों में से एक है। इस पर 80 टन का अखंड ग्रेनाइट गुंबद स्थापित है, जिसे ऊंचाई पर ले जाने के लिए चोल इंजीनियरों ने एक विशेष झुकाव वाला पुल बनाया था। आश्चर्य की बात यह है कि तंजावुर में ग्रेनाइट खदानें नहीं थीं, फिर भी पूरा मंदिर ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना है।
इतिहासकारों के अनुसार, 3000 हाथियों और सैकड़ों बैलों की मदद से ग्रेनाइट को दूर की खदानों से नदियों और नहरों के रास्ते लाया गया। मंदिर की दीवारें चोल काल के भित्तिचित्रों और शिलालेखों से सजी हैं, जो उस समय के दैनिक जीवन, शाही समारोहों, धार्मिक अनुष्ठानों और भरतनाट्यम को दिखाती हैं। शिलालेख चोल राजवंश, उनके प्रशासन और विजयों की ऐतिहासिक जानकारी देते हैं।
चोल शासक राजराज प्रथम, जो भगवान शिव के भक्त थे, उन्होंने 1004 ईस्वी में इस मंदिर की नींव रखी थी। शिलालेखों के अनुसार, 1010 ईस्वी में मंदिर के विमान पर सोने का कलश स्थापित किया गया, यानी यह भव्य मंदिर सिर्फ छह साल में बनकर तैयार हुआ। चोल राज में बृहदेश्वर मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक केंद्र भी था। शाम को लोग यहां संगीतकारों और देवदासियों के नृत्य का आनंद लेने जुटते थे। मंदिर को रोशन करने के लिए 160 दीपक और मशालें जलाई जाती थीं, जिनके लिए 2832 गायों, 1644 भेड़ों और 30 भैंसों से घी की आपूर्ति होती थी। चरवाहों को इसके लिए जमीनें दी गई थीं।
मंदिर का गर्भगृह, अर्धमंडप, महामंडप, मुखमंडप और नंदी मंदिर पूर्व-पश्चिम अक्ष पर बने हैं। परिसर में गणेश, सुब्रह्मण्यम, बृहन्नायकी, चंडिकेश्वर और नटराज के मंदिर भी हैं। विशाल द्वारपाल मूर्तियां चोल कला की विशेषता दिखाती हैं। एक दोहरी दीवार वाले प्रांगण के भीतर स्थित, बृहदेश्वर एक विशिष्ट द्रविड़ शैली का मंदिर है जिसमें प्रवेश करने के लिए पूर्व में बड़े प्रवेश द्वार हैं जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। इस मंदिर में विशेष रूप से दो गोपुरम हैं। प्रवेश द्वार की रखवाली करने वाले, पत्थर के एक-एक खंड से बने दो द्वारपाल हैं। इस गोपुरम में भगवान शिव के जीवन के दृश्यों की नक्काशी भी है।
नंदी मंडप के अंदर मुखमंडप और महामंडप भी हैं। इसके आगे अर्धमंडप है जो गर्भगृह से जुड़ा हुआ है। दो मंजिला गर्भगृह है, जिसके केंद्र में एक विशाल लिंग स्थित है। दो मंजिलों जितना बड़ा, यह शिवलिंग उस समय के सबसे विशाल लिंगों में से एक माना जाता है। गर्भगृह एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है और इसकी योजना वर्गाकार है। इसके चारों ओर एक गलियारा है जो परिक्रमा पथ है।
तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर को देखकर आज भी लोग हैरत में पड़ जाते हैं। 1000 वर्षों के बाद भी 200 फीट ऊंचा मंदिर विमान बिना किसी झुकाव के आज भी खड़ा है। मंदिर को साल 1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
--आईएएनएस
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