सशस्त्र सेना झंडा दिवस: कर्तव्य, कृतज्ञता और त्याग की राष्ट्रीय अनुभूति का दिन

सशस्त्र सेना झंडा दिवस: कर्तव्य, कृतज्ञता और त्याग की राष्ट्रीय अनुभूति का दिन

नई दिल्ली, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत की रक्षा पंक्तियों पर खड़े हर जवान में जो अदम्य साहस चमकता है, वही साहस इस देश की 140 करोड़ धड़कनों में विश्वास और सुरक्षा का संचार करता है। सैनिक केवल सीमा की रक्षा नहीं करते, वे हमारे सपनों, हमारे भविष्य और हमारे अस्तित्व की रक्षा करते हैं। इसी अनमोल सेवा और सर्वोच्च बलिदान को नमन करने का अवसर हर देशवासी को 7 दिसंबर को मिलता है, जब देश 'सशस्त्र सेना झंडा दिवस' मनाता है। एक ऐसा दिन जो कर्तव्य, त्याग और राष्ट्रीय समर्पण की सशक्त याद दिलाता है।

1949 से इस दिवस को मनाने का उद्देश्य उन शहीदों और वर्दीधारी सैनिकों का सम्मान करना है जिन्होंने दुश्मनों से डटकर मुकाबला करते हुए राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सैनिक किसी भी देश की सबसे अहम पूंजी होते हैं। वे राष्ट्र की ढाल हैं जो नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन की सबसे बड़ी कीमत चुकाते हैं। देश सदैव इन वीर सपूतों का ऋणी रहेगा जो मातृभूमि की सेवा को अंतिम धर्म मानते हैं।

यह झंडा दिवस हमें यह भी याद दिलाता है कि वीरता केवल मोर्चे पर नहीं होती, उसके पीछे कई अदृश्य त्याग भी होते हैं। सैनिक के साथ उसका परिवार भी समान रूप से उस बलिदान का हिस्सा बनता है। उनके सपने, उनकी चिंताएं और उनकी उम्मीदें अक्सर देश की खातिर पीछे रह जाती हैं। इसलिए सैनिकों और शहीदों के परिवारों की सराहना और सहयोग करना नागरिकों का साझा दायित्व बनता है।

नेपोलियन ने लिखा था, “शहीद मृत्यु से नहीं, उद्देश्य से बनते हैं।” राष्ट्र रक्षा के उद्देश्य के लिए प्राणों की आहुति देने से बड़ा कोई आदर्श नहीं हो सकता। यह श्रद्धांजलि केवल उन वीरों के लिए नहीं है, जो शहीद हो चुके, बल्कि उन जीवित नायकों, दिव्यांग पूर्व सैनिकों, युद्ध विधवाओं और आश्रितों के लिए भी है, जो राष्ट्र के प्रति अपनी अमिट सेवा के बाद अब हमारा सहारा चाहते हैं।

भारत ने युद्धों, सीमापार आतंकवाद और उग्रवाद के अनेक रूप देखे हैं। हर संघर्ष में देश ने अपने जवान खोए हैं, कई वीर हमेशा के लिए दिव्यांग हुए हैं। किसी परिवार के मुखिया की मृत्यु से जो आघात पहुंचता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। दिव्यांग सैनिकों को निरंतर पुनर्वास, उपचार और सामाजिक-सामान्य जीवन में लौटने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है। कैंसर, हृदय रोग और अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे पूर्व सैनिकों को भी वित्तीय सहयोग की जरूरत रहती है।

भारतीय सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने के लिए बड़ी संख्या में सैनिकों को 35-40 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त होना पड़ता है। हर साल लगभग 60,000 सैनिक सेवामुक्त होते हैं, जिनकी देखभाल करना केवल सरकार का नहीं, बल्कि राष्ट्र का दायित्व है। आतंकवाद-रोधी अभियानों से लेकर युद्धों तक, असंख्य घरों ने अपने कमाऊ सदस्यों को खोया है। झंडा दिवस इन परिवारों के प्रति हमारी जिम्मेदारी को रेखांकित करता है। इसी भावना के साथ झंडा दिवस फंड का संचालन किया जाता है, जो शहीदों, दिव्यांग पूर्व सैनिकों, युद्ध विधवाओं और आश्रितों के लिए सहायता सुनिश्चित करता है। इसका प्रबंधन केंद्र में रक्षा मंत्री और राज्यों में राज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर की अध्यक्षता में किया जाता है।

फंड से प्रदान की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं में चिकित्सा सहायता, युद्ध स्मारक छात्रावासों का संचालन, शैक्षिक अनुदान, दिव्यांग सैनिकों के पुनर्वास के लिए पैराप्लेजिक केंद्रों और चेशायर होम्स को अनुदान, दृष्टिहीन पूर्व सैनिकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम और गोरखा पूर्व सैनिकों के कल्याण हेतु सहायता शामिल है। रक्षा मंत्री विवेकाधीन कोष (आरएमडीएफ) के तहत गरीबी राहत, चिकित्सा सहायता, विवाह अनुदान, घर मरम्मत, अंतिम संस्कार भत्ता और अनाथ बच्चों के लिए सहायता जैसी योजनाएं संचालित की जाती हैं।

सरकारी प्रयास महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अकेले पर्याप्त नहीं। सैनिकों और शहीद परिवारों की सहायता के लिए नागरिकों का सामूहिक योगदान अनिवार्य है। यह केवल दान नहीं, बल्कि राष्ट्र की रक्षा में लगे अपने वीरों के प्रति कृतज्ञता का सबसे सच्चा स्वरूप है।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस हमें याद दिलाता है कि देश की सीमाओं पर खड़े सैनिक अकेले नहीं हैं। उनके पीछे पूरा राष्ट्र खड़ा है। उनका साहस हमारी सुरक्षा है, उनका त्याग हमारी स्वतंत्रता है और उनकी सेवा हमारी प्रेरणा है।

--आईएएनएस

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