नई दिल्ली, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। सर्दियों के आते ही मोटी जैकेट से लेकर गर्म कपड़े तक निकल आते हैं, लेकिन सिर ढकने से लोग परहेज करते हैं और लोग अपनी सेहत से खिलवाड़ कर बैठते हैं।
टोपी पहनना या सिर को कवर करना आज के युवाओं को फैशन में खलल डालने जैसा दिखता है, इसलिए वे अक्सर कानों और चेहरे को खुला छोड़ देते हैं। ऐसे में शरीर के तापमान को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। चिकित्सा विज्ञान और आयुर्वेद दोनों ही मानते हैं कि कानों के जरिए शरीर को लगी ठंड सबसे ज्यादा प्रभावित करती है।
कान हमारे शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा है, जिस पर पड़ने वाली ठंडी हवा शरीर को बीमार कर सकती है और मस्तिष्क और हृदय प्रणाली को प्रभावित कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि कान पर किसी तरह की मांसपेशियां या वसा नहीं होती है जो रक्षा कर सके। कान की त्वचा के नीचे तंत्रिकाओं का जाल होता है, जिससे सर्द हवा टकराती है तो पूरे शरीर का तापमान हिल जाता है। इससे शरीर को कई तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं।
कानों का सीधा कनेक्शन दिमाग से होता है। कानों पर लगने वाली सर्द हवा मस्तिष्क की नसों को प्रभावित करती है, जिससे सिर में दर्द की परेशानी हो सकती है। दिमाग की नसें उत्तेजित हो जाती हैं और स्थिति खराब होने पर चक्कर और बेहोशी भी हो सकती है। कानों की त्वचा के पीछे 'फेशियल नर्व' होती हैं, जो चेहरे के रक्त का संचार करती हैं। अगर कान के पीछे सीधी सर्द हवा तेजी से टकराती है तो 'फेशियल नर्व' पर सूजन आ सकती है, जो चेहरे के लकवे का कारण भी बन सकती है। ये एक तरह का अस्थायी लकवा हो सकता है, जिससे चेहरा या जबड़ा अटक जाता है।
वहीं आयुर्वेद का मानना है कि कानों का संबंध वात दोष और पाचन से भी होता है। कानों पर सर्द हवाएं लगने से पेट संबंधी परेशानी हो सकती है, जैसे पेट में गैस, मरोड़ और अपच की समस्या।
बीपी से ग्रस्त लोगों को अपने कान जरूर ढकने चाहिए, क्योंकि कानों के जरिए शरीर को लगी सर्दी शरीर की नसों को संकुचित करती है और रक्त वाहिनियों पर दबाव बढ़ जाता है, जिससे लो और हाई बीपी की परेशानी हो सकती है।
सर्दियों में हमेशा कानों को कवर करके रखें और रात के समय हल्के गुनगुने तेल से कान के पीछे की त्वचा पर मालिश करें। यह तंत्रिका तंत्र को स्थिर रखने में सहायता करती है।
--आईएएनएस
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