नई दिल्ली, 24 दिसंबर (आईएएनएस)। दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोग खर्राटों की समस्या से जूझ रहे हैं। आमतौर पर लोग इसे हल्के में ले लेते हैं, लेकिन यह न सिर्फ नींद की गुणवत्ता खराब करते हैं, बल्कि धीरे-धीरे सेहत पर भी असर डालते हैं।
सर्दियों में यह समस्या और ज्यादा देखने को मिलती है, क्योंकि इस मौसम में हवा ज्यादा ठंडी और सूखी हो जाती है। पुरुषों में यह समस्या महिलाओं के मुकाबले ज्यादा देखी जाती है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं में भी खर्राटे बढ़ सकते हैं।
सर्दियों में कई ऐसे कारण हैं, जो इस परेशानी को और गंभीर बना देते हैं। इसलिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर खर्राटे आते क्यों हैं और ठंड के मौसम में ये ज्यादा क्यों बढ़ जाते हैं।
विज्ञान के मुताबिक, खर्राटे तब आते हैं जब सोते समय सांस की नली पूरी तरह खुली नहीं रहती। नींद के दौरान शरीर की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। इसमें गले और जीभ की मांसपेशियां भी शामिल होती हैं। जब ये मांसपेशियां ढीली होती हैं, तो सांस लेने का रास्ता थोड़ा संकरा हो जाता है। जब हवा इस संकरे रास्ते से गुजरती है, तो गले के अंदर मौजूद नरम टिश्यू हिलने लगते हैं। इसी हिलने या कंपन से खर्राटों की आवाज पैदा होती है।
हर व्यक्ति में खर्राटों की वजह एक जैसी नहीं होती। कुछ लोगों के गले या नाक की बनावट ऐसी होती है कि उन्हें जल्दी खर्राटे आने लगते हैं। किसी का सॉफ्ट पैलेट मोटा होता है, तो किसी की जीभ थोड़ी बड़ी होती है। वहीं, कुछ लोगों में गर्दन के आसपास ज्यादा चर्बी जमा होती है, जिससे सांस की नली पर दबाव पड़ता है। ये सभी कारण मिलकर खर्राटों की समस्या को बढ़ा सकते हैं।
सर्दियों में खर्राटे इसलिए ज्यादा बढ़ जाते हैं क्योंकि इस मौसम की हवा बहुत सूखी होती है। जब हम ठंडी और सूखी हवा सांस के साथ अंदर लेते हैं, तो नाक और गले की अंदरूनी सतह सूखने लगती है। सूखापन आने से वहां हल्की जलन और सूजन हो सकती है। इससे सांस की नली और ज्यादा संकरी हो जाती है, जिससे सोते वक्त सांस लेते समय कंपन ज्यादा होता है और खर्राटे तेज हो जाते हैं।
इसके अलावा सर्दियों में जुकाम, एलर्जी और साइनस की समस्या भी आम होती है। नाक बंद होने पर लोग मुंह से सांस लेने लगते हैं, जिससे खर्राटों की संभावना और बढ़ जाती है।
कुछ लोगों में खर्राटों की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। मोटापा इसका एक बड़ा कारण माना जाता है। ज्यादा वजन होने पर गर्दन के आसपास जमा फैट गले की अंदरूनी जगह को दबा देता है। उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियों की ताकत भी कम होने लगती है, जिससे बुजुर्गों में खर्राटे ज्यादा हो सकते हैं। शराब पीने वालों और नींद की दवाइयों का सेवन करने वालों में भी यह समस्या आम है, क्योंकि ये चीजें गले की मांसपेशियों को जरूरत से ज्यादा ढीला कर देती हैं।
खर्राटों को कम करने के लिए जीवनशैली में जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं। सोने की पोजिशन इसमें अहम भूमिका निभाती है। करवट लेकर सोने से सांस का रास्ता ज्यादा खुला रहता है, जिससे खर्राटे कम आते हैं। इसी तरह देर रात भारी खाना खाने से भी बचना चाहिए, क्योंकि भरा हुआ पेट डायफ्राम पर दबाव डालता है और सांस लेने में दिक्कत पैदा कर सकता है।
सर्दियों में कमरे की हवा पर खास ध्यान देना जरूरी होता है। बहुत ज्यादा सूखी हवा नाक और गले को नुकसान पहुंचा सकती है। हल्की नमी बनाए रखने से सांस की नली आराम में रहती है। नाक को नम रखने के लिए गुनगुने पानी से भाप लेना भी मददगार हो सकता है। इससे जमा कफ ढीला होता है और नाक खुलती है।
--आईएएनएस
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