नई दिल्ली, 1 जुलाई (आईएएनएस)। जरा कल्पना कीजिए उस युग की, जब खबरें सिर्फ कागजों पर थीं और संवाद तारों के सहारे होता था। फिर एक संवाद की परिभाषा बदल गई, रेडियो का आविष्कार हुआ और इसके केंद्र में थे इटली के एक युवा वैज्ञानिक, नाम था गूल्येल्मो मार्कोनी। हर साल 2 जुलाई की तारीख विज्ञान और मानव संचार की दुनिया में एक क्रांतिकारी मोड़ की याद दिलाती है।
यही वह दिन है जब गूल्येल्मो मार्कोनी ने अपनी ऐतिहासिक खोज 'रेडियो' के लिए पेटेंट प्राप्त किया था। यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं थी, बल्कि पूरे संचार तंत्र को तार-मुक्त (वायरलेस) बनाने की शुरुआत थी। आज जिस वायरलेस दुनिया में हम जी रहे हैं, जहां मोबाइल, ब्लूटूथ, वाईफाई और सैटेलाइट कम्युनिकेशन नॉर्मल है, उसकी नींव मार्कोनी ने ही रखी थी।
गूल्येल्मो मार्कोनी का जन्म 1874 में इटली के एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। बचपन से ही विज्ञान और विशेष रूप से विद्युत तरंगों में उनकी रुचि थी। उन्होंने जर्मन वैज्ञानिक हेनरिच हर्ट्ज़ के प्रयोगों को पढ़ा और उन्हें आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। 1896 में मार्कोनी ने पहली बार वायरलेस टेलीग्राफी के यंत्र का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। यह यंत्र एक प्रकार का ट्रांसमीटर और रिसीवर था, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के जरिए संदेश भेजने में सक्षम था। लेकिन विडंबना यह रही कि अपने ही देश इटली में उन्हें ज्यादा समर्थन नहीं मिला।
इसके बाद 1896 में ही मार्कोनी इंग्लैंड पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात सर विलियम प्राइस से हुई। यह एक निर्णायक क्षण था। इंग्लैंड ने उनके प्रयोगों को स्वीकारा और उन्हें आगे बढ़ाने का मंच भी दिया। मार्कोनी ने तेजी से प्रयोग किए और पहले से ज्यादा दूरी तक संदेश भेजने में सफल होते गए। फिर आया वह ऐतिहासिक दिन, 1 जुलाई 1897, जब मार्कोनी को रेडियो टेलीग्राफ के लिए पेटेंट मिल गया, जिसे अब दुनिया रेडियो के जन्म के रूप में पहचानती है। अगले दिन, यानी 2 जुलाई को मार्कोनी की खोज को सार्वजनिक और औपचारिक मान्यता मिली। इस दिन को रेडियो क्रांति के सूत्रपात के रूप में याद किया जाता है।
मार्कोनी ने 1899 में वह कर दिखाया जिसकी उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने फ्रांस और इंग्लैंड के बीच समुद्र पार कर सिग्नल भेजा। यह प्रयोग एक ऐतिहासिक उदाहरण बना कि रेडियो तरंगें सीमाओं से परे संवाद स्थापित कर सकती हैं। इस प्रयोग ने यह सिद्ध कर दिया कि वायरलेस तकनीक वैश्विक संचार की रीढ़ बन सकती है।
मार्कोनी की इस खोज ने ही आधुनिक रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट और वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम की आधारशिला रखी। इसके लिए उन्हें 1909 में फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार भी मिला। आज हम जिस 5जी, ब्लूटूथ, वाईफाई और जीपीएस जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हैं, वह उसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की शक्ति पर आधारित हैं, जिसे मार्कोनी ने दुनिया को समझाया।
--आईएएनएस
पीएसके/केआर