परिवहन दिवस : यात्रा सिर्फ मंजिल तक पहुंचना नहीं, पर्यावरण, सुरक्षा और समावेशिता का भी संतुलन

परिवहन दिवस : यात्रा सिर्फ मंजिल तक पहुंचना नहीं, बल्कि पर्यावरण, सुरक्षा और समावेशिता का संतुलन

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। 'परिवहन दिवस' न केवल परिवहन क्षेत्र के योगदान को याद करने का अवसर है, बल्कि सतत, सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन प्रणाली के निर्माण का संकल्प लेने का भी दिन है। प्रत्येक साल 10 नवंबर को 'परिवहन दिवस' मनाया जाता है, जो हमें याद दिलाता है कि यात्रा सिर्फ मंजिल तक पहुंचना नहीं, बल्कि पर्यावरण, सुरक्षा और समावेशिता का संतुलन है।

भारत में यह दिवस 1950 के दशक से मनाया जा रहा है, जब परिवहन सेवाओं के राष्ट्रीयकरण की शुरुआत हुई। आजादी के बाद परिवहन ने अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनकर विकास की गति को तेज किया। लेकिन, बढ़ते प्रदूषण, सड़क दुर्घटनाओं और भीड़भाड़ के बीच यह दिवस चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देता है।

'परिवहन दिवस' का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है। 1947 के बाद सरकार ने रेल, सड़क और जलमार्गों को मजबूत करने पर जोर दिया। 10 नवंबर को विशेष रूप से चुना गया क्योंकि इसी दिन परिवहन सेवाओं के विस्तार की महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित हुई थीं। वर्तमान समय में यह दिन यातायात नियमों, दुर्घटना रोकथाम और तकनीकी उन्नति पर जागरूकता फैलाने का माध्यम बन चुका है।

विश्व स्तर पर 10 नवंबर को ही 'विश्व सार्वजनिक परिवहन दिवस' के रूप में भी जाना जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र की पहल से जुड़ा है।

2025 में भारत का परिवहन क्षेत्र काफी प्रगति कर रहा है। राष्ट्रीय राजमार्गों का नेटवर्क अब 1.46 लाख किलोमीटर तक विस्तृत हो चुका है, जो 2014 से दोगुना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 'भारतमाला परियोजना' के तहत 34,800 किलोमीटर सड़कें बन रही हैं, जो आर्थिक गलियारों को जोड़ेंगी।

रेलवे में वंदे भारत ट्रेनों की संख्या 150 से अधिक हो गई है, जो सामान्य ट्रेनों की तुलना में अधिक रफ्तार से यात्रा करने के लिए बनाई गई हैं। वंदे भारत भारतीय रेलवे की अग्रणी सेमी-हाई स्पीड ट्रेनें हैं, जो 2019 में पहली बार शुरू की गईं। वंदे भारत आधुनिक सुविधाओं जैसे वाई-फाई, जीपीएस-आधारित सूचना प्रणाली, ऑटोमैटिक दरवाजे और आरामदायक सीटों से लैस हैं। ये मध्यम दूरी (800 किमी से कम) के लिए डिजाइन की गई हैं और यात्रा समय को काफी कम करती हैं।

यहां तक कि बहुत जल्द भारत में बुलेट ट्रेन का सपना भी साकार होने जा रहा है। इसके अलावा, देश के विभिन्न शहरों में मेट्रो, रैपिड रेल और एक्सप्रेसवे का जाल भी बिछ रहा है, जिसने कहीं न कहीं सभी को प्रभावित किया है। मेट्रो नेटवर्क अब 1,000 किलोमीटर को पार कर गया, जिसमें दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु अग्रणी हैं। इसने दैनिक यात्रा को तेज, सुगम और आरामदायक बनाया है। वहीं, अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भी सकारात्मक असर पड़ा है।

वायु परिवहन में 'उड़ान योजना' ने छोटे एयरपोर्ट को जोड़ा, जबकि जलमार्गों पर सागरमाला प्रोजेक्ट से माल ढुलाई पहले की तुलना में सस्ती हुई।

हालांकि, कई चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष 1.5 लाख मौतें हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर हेलमेट न पहनने या तेज रफ्तार की वजह से होती हैं। ईंधन खपत और बढ़ता वायु प्रदूषण भी एक समस्या है, जिसके समाधान के लिए सरकार प्रयासरत है। इथेनॉल और ईवी की पहल कहीं न कहीं इसी समाधान का हिस्सा है।

यहां तक कि इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने के लिए एफएएमई-III (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) योजना 2025 में लॉन्च हुई, जिसके तहत 1 करोड़ ईवी सब्सिडी पर उपलब्ध होंगे।

सरकार का मानना है कि भारत का परिवहन क्षेत्र 2030 तक जीडीपी में 15 प्रतिशत का योगदान देगा, बशर्ते सतत विकास पर फोकस रहे।

--आईएएनएस

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