मुंबई, 15 दिसंबर (आईएएनएस)। हर्षदीप कौर का नाम सुनते ही लोगों के कानों में उनकी मधुर आवाज गूंजने लगती है। बॉलीवुड और सूफी संगीत में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है। उनकी गायकी की ताकत ही नहीं, बल्कि उनका स्टाइल और पहनावा भी उन्हें दर्शकों के बीच खास बनाता है, खासकर उनकी पगड़ी, जो सिर्फ एक ड्रेस स्टेटमेंट नहीं बल्कि उनकी पहचान का हिस्सा बन गई है।
हर्षदीप गायन के दौरान हमेशा पगड़ी पहनती हैं और यही अंदाज उन्हें बाकी गायकों से अलग करता है।
हर्षदीप का जन्म 16 दिसंबर 1986 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट की एक फैक्ट्री के मालिक हैं। हर्षदीप बचपन से ही संगीत के माहौल में पली-बढ़ी। उन्होंने महज छह साल की उम्र में संगीत की तालीम लेना शुरू किया। पियानो और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उन्होंने दिल्ली के स्कूल ऑफ म्यूजिक से ली। छोटी उम्र से ही उनका संगीत में गहरा रुझान था और परिवार ने उनका हौसला बढ़ाया।
हर्षदीप ने प्रारंभिक पढ़ाई दिल्ली से पूरी की। 12 साल की उम्र में उन्होंने पियानो सीखना शुरू कर दिया और 16 साल की उम्र में उन्होंने बॉलीवुड में पहला गाना 'सजना मैं हारी' गाया, लेकिन उन्हें पहचान 2008 में रियलिटी शो 'जुनून- कुछ कर दिखाने का' में हिस्सा लेने पर मिली। इस शो में हर्षदीप ने सूफी, फोक और बॉलीवुड तीनों जॉनर में परफॉर्म किया।
इस दौरान उन्होंने अपनी पगड़ी पहनकर गाने की इच्छा जताई, जो उनके धार्मिक और पारंपरिक विश्वासों से जुड़ा था। यही पगड़ी और उनका सूफी अंदाज उन्हें दर्शकों और जजों के बीच खास बना गया। शो के ग्रैंड फिनाले में महानायक अमिताभ बच्चन ने उन्हें 'सूफी की सुल्ताना' का खिताब दिया। इस खिताब ने उन्हें पूरे देश में एक अलग पहचान दिलाई।
हर्षदीप ने बॉलीवुड में कई यादगार गाने दिए। 'इक ओंकार', 'कतिया करूं', 'दिलबरों', 'जुगनी', 'हीर और जालिमा', 'नचड़े दे सारे', और 'माई रे माई' जैसे गानों ने उनके करियर में चार चांद लगाए। उनका अंदाज, उनकी पगड़ी और उनकी संगीत शैली ने हर्षदीप को सिर्फ गायिका ही नहीं बल्कि एक आइकॉन बना दिया।
हर्षदीप ने सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी गाया। ऑस्कर विजेता निर्देशक डैनी बॉयल की फिल्म '127 आवर्स' के लिए गाना गाया। इसके अलावा, वह कई लाइव कॉन्सर्ट्स भी करती रहती हैं।
हर्षदीप ने कई पुरस्कार भी जीते। उन्हें 'दिलबरों' गाने के लिए आईफा और स्क्रीन अवॉर्ड, 'बानी-इश्क दा कलमा' के लिए भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार और कई अन्य सम्मान मिल चुके हैं।
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