मुरुदेश्वर शिव मंदिर : रावण और भगवान गणेश से जुड़ा इतिहास, 123 फीट की प्रतिमा विराजमान

मुरुदेश्वर शिव मंदिर : रावण और भगवान गणेश के छल से जुड़ा इतिहास, 123 फीट की प्रतिमा विराजमान

नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)। विश्व के हर कोने में भगवान शिव विराजमान हैं, ऐसे ही नहीं कहा जाता है कि ब्रह्मांड के हर कण में शंकर हैं।

विश्व के हर कोने में भगवान शिव का मंदिर देखने को मिल जाएगा और उनकी अराधना करने वाले भक्तों की कमी भी नहीं है। लेकिन, अरब सागर के किनारे विराजमान भगवान शिव इतने अद्भुत हैं कि खुद सागर की लहरें उनके चरणों को छूने के लिए आती हैं। हम बात कर रहे हैं मुरुदेश्वर शिव मंदिर की।

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में समुद्र के किनारे 'कंदुका गिरि' पहाड़ी पर मुरुदेश्वर शिव मंदिर स्थापित है। इस मंदिर का इतिहास और वास्तुकला दोनों ही खास हैं। यह विश्व की दूसरी ऐसी शिव प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 123 फुट है। समुद्र किनारे होने की वजह से यहां का नजारा और ज्यादा खूबसूरत हो जाता है। समुद्र की लहरें जब भी उठती हैं, भगवान शिव के चरणों को छूकर जाती हैं। इसकी भव्यता के कारण यह देश के लोकप्रिय तीर्थस्थलों और पर्यटन स्थलों में से एक है। प्रतिमा तक पहुंचने से पहले भक्त मूल मंदिर में दर्शन करते हैं।

मुरुदेश्वर शिव मंदिर का गोपुरम अपने आप में खास है। इसका गोपुरम 20 मंजिला है, जिसमें महाभारत, रामायण के पात्र और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा को पत्थर पर उकेरा गया है। मंदिर ग्रेनाइट से बना है और मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ स्थापत्य शैली, चालुक्य और कदंब राजवंश को दर्शाती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान के शिवलिंग स्वरूप की पूजा की जाती है।

मंदिर की पौराणिक कथा रावण और भगवान शिव से जुड़ी है। कहा जाता है कि रावण ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें आत्मलिंग दिया था। रावण के अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान शिव ने कहा था कि इस शिवलिंग को जमीन पर नहीं रखना है, अगर ऐसा हुआ तो, वे वहीं स्थापित हो जाएंगे। आत्मलिंग को लंका जाने से रोकने के लिए भगवान गणेश ने रावण के साथ छल किया और शिवलिंग 'कंदुका गिरि' पर स्थापित हुआ।

मुरुदेश्वर शिव मंदिर में सावन के महीने में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सावन में आत्मलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। लेकिन, मंदिर के गर्भगृह में भगवान के दर्शन के लिए विशेष ड्रेस कोड लागू है। महिलाएं और पुरुष दोनों को ही भारतीय परिधान के साथ मंदिर में प्रवेश मिलता है। मंदिर में दर्शन के बाद पहाड़ी पर विराजमान भगवान शिव की पूजा की जाती है।

--आईएएनएस

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