नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। विश्व भर में 18 महाशक्तिपीठ मंदिर हैं, जो सिर्फ भारत में ही नहीं हैं, बल्कि एक मंदिर श्रीलंका में भी स्थापित है।
माना जाता है कि मां सती के कमर का हिस्सा श्रीलंका की पहाड़ी पर गिरा था और उनकी रक्षा करने के लिए भी भगवान शिव त्रिकोणेश्वर के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का इतिहास कई किंवदंतियों और पुर्तगाली उपनिवेश के समय से भी जुड़ा है, जब मंदिर पर हमला कर इसमें मौजूद सभी कीमती चीजों को लूट लिया गया था।
श्रीलंका के पूर्वी तट पर त्रिंकोमाली के पास रावणन वेद्दु नाम की पहाड़ी पर मां शंकरी देवी का मंदिर स्थित है। हालांकि 15वीं ईस्वी के आस-पास पुर्तगालियों ने मंदिर पर हमला कर दिया था और मंदिर को पूरा ध्वस्त कर दिया। मंदिर में मौजूद प्रतिमाओं को कई वर्षों तक एक कुएं में छिपाकर रखा और बाद में मंदिर का दक्षिण भारतीय चोल शासक कुलकोट्टन ने मंदिर का दुबारा निर्माण कराया। इसके कुछ सालों बाद मंदिर के बगल में भी भगवान शिव के त्रिकोणेश्वर मंदिर का भी निर्माण कराया गया। मूल मंदिर को पुर्तगालियों ने बुरी तरीके से नष्ट कर दिया था और सिर्फ आधा स्तंभ ही बचा था, जो आज भी मंदिर में मौजूद है।
कहा जाता है कि श्रीलंका की धरती पर 2500 वर्षों से पहले से हिंदू देवी-देवताओं के रूप में मां पार्वती और भगवान शंकर की पूजा होती आई है। कहा जाता है कि त्रिकोणेश्वर मंदिर की नींव ऋषि अगस्त्य ने लिखी थी। ऋषि अगस्त्य को भगवान शिव ने खुद आकर मंदिर बनाने का निर्देश दिया था। यह मंदिर अद्भुत है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान ने अपने भक्त के लिए बनवाया था। देवी मंदिर में देवी शंकरी की पूजा मथुमाई अम्बल के रूप में की जाती है।
मंदिर के पास-पास भी बहुत सारे दर्शन स्थल बने हैं। मंदिर जिस पहाड़ी पर बना है, उसके आस कई गर्म पानी के झरने और ज्वालामुखी मौजूद हैं। ये क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से बहुत संवेदनशील हैं क्योंकि ज्वालामुखी होने की वजह से यहां ज्यादा भूकंप आते हैं।
मंदिर के पास एक बिल्व वृक्ष मौजूद है। कहा जाता है कि इसी मंदिर के नीचे बैठकर भगवान राम ने भगवान शिव का ध्यान किया था। इसके अलावा, पास ही महावेली गंगा निकलती है, जिसे भगवान शिव की प्रिय माना जाता है। पहाड़ी क्षेत्र से होते हुए नदी, हिंद महासागर में गिरती है। भक्त मंदिर में दर्शन करने के बाद पवित्र नदी के दर्शन जरूर करते हैं।
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